तमिलनाडु के कन्याकुमारी में स्थित कन्याश्रम में सर्वाणी शक्ति पीठ (Shravani Shakti Peeth) स्थित है। यह शक्ति पीठ उन 51 शक्ति पीठों में से एक है जो माता सती के मृत शरीर के भाग गिरने से बने हैं। इस स्थान पर माता सती की पीठ गिरी थी। कुछ विद्वान लोगों का मत है कि यहां पर माता का ऊर्ध्व दंत गिरा था। इस शक्ति पीठ की शक्ति है सर्वाणी तथा यहां पर शिव को निमिष कहा जाता है। सर्वाणी शक्ति पीठ को कालिककशराम या कन्याकुमारी शक्ति पीठ के नाम से भी जाना जाता है। यह शक्ति पीठ एक टापू पर स्थित है जो चारों ओर से जलमग्न है। इस स्थान के दृश्य बहुत ही सुंदर हैं। इस शक्ति पीठ से जुडी है एक अनोखी कहानी, जिसके अनुसार एक कुँवारी कन्या के प्रकोप से बाणासुर नामक राक्षस का वध हुआ था, क्या आप इस पूरी कहानी को जानते हो? अगर नहीं, तो आप आर्टिकल में आगे पूरी कहानी को पढ़ सकते हैं और साथ ही मंदिर से जुड़े रहस्य और अन्य महत्वपूर्ण बातों को जानेंगे।
सर्वाणी शक्ति पीठ का इतिहास | Shravani Shakti Peeth History in Hindi
ऐतिहासिक तथ्यों के अनुसार भगवान परशुराम ने देवी सर्वाणी मंदिर की स्थापना की थी। मंदिर में मौजूद शिलालेखो द्वारा सबूत मिलता है कि यह शक्ति पीठ 3000 साल पुराना है।
लेकिन इतिहासकारों की माने तो वर्तमान मंदिर का निर्माण 8वीं शताब्दी में हुआ है, जिसका निर्माण पांडव सम्राट ने करवाया था।
सर्वाणी शक्ति पीठ मंदिर की संरचना | Shravani Shakti Peeth Architecture
सर्वाणी शक्ति पीठ मंदिर (Shravani Shakti Peeth) को द्रविड़ वास्तुकला के साथ निर्मित किया गया है। मंदिर के अंदर स्थित काले खंभों पर खूबसूरत नक्कासियाँ की गई है। मंदिर के अंदर प्रमुख देवी मूर्ति के साथ गणेश, अयप्पा स्वामी, काल भैरव, विजय सुंदरी, तथा अन्य देवताओं की मूर्तियां स्थापित की गई हैं। मंदिर के परिसर में एक विशाल कुंआ देखा जा सकता है, जिसे गंगातीर्थम के नाम से जाना जाता है।
मंदिर की प्रमुख देवी की प्रतिमा काफी आकर्षित लगती है, देवी के कान की बाली में एक हीरा लगा हुआ है, जिसकी रोशनी काफी दूर तक जाती है। देवी की मूर्ति को नीले पत्थर से निर्मित किया गया है। देवी की मूर्ति देखने में सुंदर कन्या जैसी प्रतीत होती है।
सर्वाणी शक्ति पीठ की महत्वपूर्ण जानकारियां
मंदिर का नाम | सर्वाणी शक्ति पीठ मंदिर (Shravani Shakti Peeth) |
मंदिर के प्रमुख देवता | देवी सर्वाणी |
मंदिर का स्थान | कन्याकुमारी, तमिलनाडु |
मंदिर की प्रमुखता | पौराणिक घटना के अनुसार मंदिर के पास देवी सती की पीठ का निपात हुआ था। |
मंदिर की वास्तुकला | द्रविड़ वास्तुकला |
मंदिर की भाषा | इंग्लिश, तमिल |
मंदिर का निर्माणकाल | 3000 वर्ष पूर्व |
मंदिर खुलने का समय | प्रातः काल 5 बजे |
सर्वाणी शक्ति पीठ के रहस्य | Shravani Shakti Peeth Facts in Hindi
भारत में 51 शक्ति पीठ मौजूद हैं, जिनके बारे में हर तरह के लोग अनेकों रहस्य बताते हैं, इसी तरह सर्वाणी शक्ति पीठ के अनेकों रहस्य हैं, जिन्हे आप आर्टिकल में आगे पढ़ सकते हैं।
- हिंदू धर्म ग्रंथो के अनुसार प्राचीन दैविक घटना काल में देवी सती का पृष्ठ भाग अर्थात पीठ कटकर जिस स्थान अपर गिरी थी, उसे आज हम सर्वाणी शक्ति पीठ (Shravani Shakti Peeth) के नाम से जानते हैं
- सर्वाणी शक्ति पीठ (Shravani Shakti Peeth) को अन्य तीन नाम से भी जाना जाता है जिसमें कन्याकुमारी शक्ति पीठ, कालिका शक्ति पीठ, कन्याश्रम शक्ति पीठ शामिल हैं।
- सर्वाणी शक्ति पीठ मंदिर (Shravani Shakti Peeth) में स्थित प्रमुख देवी को सर्वाणी तथा देवता को निमिष के नाम से जाना जाता है।
- सर्वाणी शक्ति पीठ (Shravani Shakti Peeth) चारों तरफ से समुंद्र से घिरा हुआ है, इसलिए इसका नजारा देखने में काफी अद्भुत लगता है।
- सर्वाणी शक्ति पीठ (Shravani Shakti Peeth) को वर्तमान में स्वामी विवेकानंद रॉक के रूप में भी जाना जाता है।
- सर्वाणी शक्ति पीठ (Shravani Shakti Peeth) तीन सुंदर के तट पर स्थित है, इसी लिए यहां पर स्नान करना पवित्र माना जाता है, एक मान्यता के अनुसार यंहां भक्तों के स्नान मात्र सभी शारीरिक कष्ट दूर हो जाते हैं।
- सर्वाणी शक्ति पीठ मंदिर (Shravani Shakti Peeth) के स्थान पर ही देवी सर्वाणी ने कन्या के रूप में बाणासुर का वध किया था, इस पौराणिक कहानी को आप आर्टिकल में आगे पढ़ सकते हैं।
सर्वाणी शक्ति पीठ की पौराणिक कहानी | Shravani Shakti Peeth Story in Hindi
सर्वाणी शक्ति पीठ मंदिर (Shravani Shakti Peeth) से जुड़ी एक पुरानी कहानी आज भी सुनी जाती है, जिसका उल्लेख प्राचीन ग्रंथो में भी किया गया है। इस आर्टिकल के माध्यम से आप बाणासुर की कहानी को विस्तार से जानेंगे।
एक बार की बात है जब दैविक काल में बाणासुर भगवान शिव की कठोर तपस्या कर रहा था। बाणासुर ने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए कई सालों तक तपस्या की और उनके दर्शन का इंतजार करने लगा। जब शंकर भगवान ने बाणासुर की कठोर तपस्या को दिव्य दृष्टि से देखा तब, भगवान को बाणासुर पर दया आ गई और उन्होंने बाणासुर को दर्शन दिए।
भगवान शिव ने प्रसन्न होकर बाणासुर से अंतरध्यान से उठने के लिए कहा, और वर मांगने के लिए कहा। तब वह भगवान के सामने हाथ जोड़कर कोटि-कोटि नमन करने लगा, और भगवान के आगे हाथ जोड़कर कहने लगा, हे प्रभु मुझे ऐसा वर दो जिससे मैं दुनिया में किसी बलशाली व्यक्ति से ना मर पाऊं। लेकिन अगर मेरी मृत्यु निश्चित है तो मेरा वध सिर्फ एक कुंवारी कन्या के हाथ से ही हो पाए, अन्यथा संसार में कोई भी मुझे नाम मार पाए।
तब भगवान शिव ने बाणासुर के वर को स्वीकार कर लिया और तथास्तु बोलकर वहां से विलुप्त हो गए। भगवान शिव से वरदान प्राप्त करने के बाद बाणासुर तीनों लोकों पर लूट पाट मचाने लगा, और हर जगह अपना राज्य स्थापित करने लगा।
स्वर्ग में रहने वाले सभी देवी और देवता उसके इस व्यवहार से काफी चिंतित हो चुके थे, अपनी चिंता का समाधान करने के लिए वह भगवान विष्णु के पास पहुंचे। जब भगवान ने सभी देवी और देवताओं के स्वर को सुना तब वह ध्यान से बाहर आए और देवताओं से पूछने लगे, हे देवतागण क्या बात है आप लोग इतने चिंतित क्यों हैं?
तब सभी देवताओं ने मिलकर बाणासुर के कुकर्मों के बारे में बताया। जब विष्णु भगवान ने उनकी परेशानियों को सुना, तब वह सभी देवताओं को एक उपाय बताने लगे, जिसके अनुसार उन्हें देवी पार्वती की तपस्या करनी थी और बाणासुर का वध एक कुंवारी कन्या के हाथो होना था।
इसके बाद सभी देवताओं ने मिलकर देवी पार्वती की कठोर तपस्वी की। परिणामस्वरूप देवी पार्वती ने सभी देवताओं को कुंवारी कन्या के रूप में दर्शन दिए। देवी के दर्शन देने के बाद सभी देवता मिलकर अपनी समस्याओं का निवारण पूछने लगे। तब देवी ने सभी देवताओं को बताया कि एक निश्चित समय आने पर सब कुछ ठीक हो जाएगा और इतना कहकर वह विलुप्त हो गई।
इसके बाद कई साल बीत गए, लेकिन बाणासुर अपने कुकर्मों से पीछे नहीं हट रहा था, बल्कि उसने और ज्यादा तबाही बचाना शुरू कर दी।
दूसरी तरफ देवी पार्वती भगवान शिव से विवाह रचाने के लिए तपस्या करने लगीं। यह देखकर सभी देवता चिंतित हो गए, क्योंकि बाणासुर का वध एक कुंवारी कन्या के हाथो से होना था, अगर देवी पार्वती की शादी भगवान शिव से हो जाती है, तब वह कुंवारी नहीं रहेंगी और इस तरह बाणासुर पूरे ब्रह्मांड में तबाही मचाता रहेगा।
इन सभी लीलाओं को देखते हुए सभी देवतागण फिर से विष्णु जी के पास गए और अपनी चिंता का संपूर्ण कारण बताया। तब भगवान विष्णु ने सभी देवता को आश्वासन देते हुए कहा कि आप लोग चिंतित ना हो, इस लीला में मेरा भी हाथ है जोकि समय आने पर पूर्ण होगा और इसके बाद देवी सती और बाणासुर में युद्ध होगा जिसमें बाणासुर मारा जाएगा।
इधर देवी पार्वती कठोर तपस्या में अंतर्मन हो गई और भगवान शिव को खुश करने के लिए कई सालों से तपस्या कर रही थी। आखिर में भगवान शिव पार्वती जी की तपस्या से प्रसन्न हुए और शादी का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया। इसके बाद शादी का शुभ मुहूर्त निकाला गया।
आखिर वह दिन आ गया था, जिस दिन भगवान शिव और पार्वती की शादी होनी थी। उस दिन भगवान शिव कैलाश पर्वत से होकर शादी के वास्तविक स्थल पर आने वाले थे। लेकिन दूसरी तरफ भगवान विष्णु ने अपनी रहस्यमई लीला रची, जिसमे वह मुर्गे के रूप में मुर्गे की ध्वनि निकालने लगे।
यह ध्वनि सुनकर भगवान शिव आशंकित रूप में सोचने लगे कि शायद शादी का शुभ मुहूर्त खत्म हो गया, और अगली सुबह हो गई है। इसलिए मुझे विवाह स्थल पर नहीं जाना चाहिए। यह सोचकर भगवान शिव कैलाश पर्वत पर लौटने लगे।
इधर माता पार्वती भगवान शिव का इंतजार कर रही थी, लेकिन काफी समय बीत जाने के बाद जब भगवान शिव विवाह स्थल पर नहीं आए, तब देवी पार्वती अत्यधिक क्रोधित हो गई। उनके क्रोध से तीनों लोक में प्रलय मच गई। इसी दौरान बाणासुर को इस बात का पता लगा कि किसी कुंवारी कन्या का स्वयंवर हो रहा है, तब उसने विवाह का प्रस्ताव रखा। जब माता पार्वती को इस बारे में पता चला तब उन्होंने इस प्रस्ताव को मना कर दिया। लेकिन इसके बाद भी बाणासुर नही माना और जबरन शादी के लिए पार्वती जी के पास पहुंच गया।
बाणासुर के जबरदस्ती करने पर देवी और असुर में भयंकर युद्ध होने लगा। इस युद्ध के अंत में बाणासुर मारा गया। लेकिन इसके बाद भी देवी शांत नहीं हुई। तब भगवान शिव ने खुद देवी के पास जाकर उन्हें शांत किया।
जहां पर बाणासुर का वध हुआ था वही पर आगे चलकर सर्वाणी शक्ति पीठ मंदिर (Shravani Shakti Peeth) को स्थापित कर दिया गाया।
सर्वाणी शक्ति पीठ से जुड़े प्रमुख त्योहार | Shravani Shakti Peeth Releated Festival
सामान्य रूप से सर्वाणी शक्ति पीठ मंदिर (Shravani Shakti Peeth ) में हर दिन त्योहार जैसा प्रतीत होता है, क्योंकि यहां पर प्रत्येक दिन हजारों श्रद्धालुओं की भीड़ लगी रहती है। लेकिन मंदिर से जुड़े कुछ त्योहार ऐसे भी हैं, जिन्हे मंदिर में विशेष रूप से मान्यता दी जाती है। आर्टिकल में आप उन्हीं त्योहारों के बारे में विस्तार से जानेंगे।
चित्रा पूर्णिमा
यह त्योहार मंदिर में मई महीने में आयोजित किया जाता है। इस दिन मंदिर में पूजा के साथ कथा का पाठ किया जाता है, कथा सुनने के लिए स्थानीय लोग भी मंदिर में दर्शन के लिए आते हैं और देवी से प्राथना करते हैं।
नवरात्रि
शरद ऋतू की नवरात्रि केवल मंदिर में ही नही बल्कि पूरे भारत में विख्यात है। इन दिनों में मंदिर में नौ दिनों तक विशेष पूजा की जाती है जिसमें भारत के हर प्रदेश से श्रद्धालु देवी के दर्शन के लिए आते हैं।
वैशाख महोत्सव
वैशाख महोत्सव मंदिर का एक विशेष उत्सव है जोकि मई तथा जून के महीने में मनाया जाता है। इस त्योहार को मंदिर में 10 दिन तक मनाया जाता है। इस पर्व की सबसे खास बात यह कि 10 दिनों तक देवी को अलग अलग पालकियों में बिठाकर देवी का जुलूस निकाला जाता है। फिर देवी को मंदिर में लाकर उनकी पूजा आराधना की जाती है।
कालाभाम महोत्सव
यह एक अन्य त्योहार है, जिसे जुलाई या अगस्त के महीने में मनाया जाता है। इस दिन मंदिर में विशेष पूजा की जाती है, जिसमे मंदिर में मौजूद मुख्य मूर्ति पर चंदन का लेप लगाया जाता है। और देवी की फल की प्राप्ति के लिए पूजा आराधना की जाती है।
सर्वाणी शक्ति पीठ कैसे पहुंचे | How To Reach Shravani Shakti Peeth
जो भक्तगण सर्वाणी शक्ति पीठ (Shravani Shakti Peeth) के दर्शन करना चाहते है वह त्योहारों के शुभ अवसर पर मंदिर जा सकते हैं। क्योंकि मंदिर में त्योहारों के विशेष अवसर पर विभिन्न कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं, जिन्हे देखने पर परम आनंद की प्राप्ति होती है। अगर कोई भक्तगण मंदिर जाने का प्लान बना रहा है तब वह सड़क मार्ग, रेल मार्ग तथा एयरप्लेन की मदद से मंदिर तक जा सकता है। चलिए अब इन रास्तों को विस्तार से जानते हैं।
सड़क मार्ग द्वारा सर्वाणी शक्ति पीठ मंदिर कैसे पहुंचे
अगर आप सर्वाणी शक्ति पीठ मंदिर (Shravani Shakti Peeth) सड़क मार्ग द्वारा जाना चाहते हैं, तब आपको अपने शहर से तमिलनाडु की तरफ जाने वाली बस का पता करना होगा। आप बस के माध्यम से तमिलनाडु में जा सकते हैं, तमिलनाडु में पहुंचने के बाद राज्य में चलने वाली बस की मदद ले सकते हैं, जोकि आपको कन्याकुमारी बस स्टॉप तक छोड़ देगी। बस स्टॉप से मंदिर की दूरी लगभग 1 किलोमीटर है, यहां से मंदिर जाने के लिए आप पैदल या फिर ऑटो की सहायता ले सकते हैं।
ट्रेन मार्ग द्वारा सर्वाणी शक्ति पीठ मंदिर कैसे पहुंचे
अगर आप ट्रेन के माध्यम से मंदिर पहुंचाना चाहते हैं, तब आपके लिए यह सफर काफी सस्ता हो सकता है। आपके शहर से मंदिर तक पहुंचने लिए, सबसे पहले आपको तमिलनाडु के कन्याकुमारी रेलवे स्टेशन की टिकट बुक करवाना होगी। रेलवे स्टेशन पहुंचने के बाद अब पैदल या फिर ऑटो की मदद से मंदिर तक पहुंच सकते हैं। जानकारी के लिए बताना चाहेंगे, रेलवे स्टेशन से मंदिर की दूरी लगभग 1 किलोमीटर है।
एयरोप्लेन से सर्वाणी शक्ति पीठ मंदिर कैसे पहुंचे
जिन लोगों के पास मंदिर ट्रैवलिंग के लिए अच्छा बजट है, वह एरोप्लेन से मंदिर का सफर तय कर सकते हैं। मंदिर तक पहुंचने के लिए सबसे पहले आपको त्रिवेंद्रम इंटरनेशनल एयरपोर्ट की टिकट बुक करवानी होगी। एयरपोर्ट से मंदिर की दूरी लगभग 100 किलोमीटर है। इसलिए आप एयरपोर्ट पहुंचने के बाद टैक्सी बुक कर सकते हैं, जोकि आपको मंदिर तक छोड़ देगी।
FAQ: Shravani Shakti Peeth
सर्वाणी शक्ति पीठ मंदिर (Shravani Shakti Peeth) कहां पर स्तिथ है?
कन्याश्रम, तमिलनाडु (भारत)।
सर्वाणी शक्ति पीठ मंदिर (Shravani Shakti Peeth) की प्रमुखता क्या है?
मंदिर के पास ही देवी सती की पीठ का निपात हुआ था।
सर्वाणी शक्ति पीठ मंदिर (Shravani Shakti Peeth) से जुड़े प्रमुख त्योहार कौन से है?
वैशाख महोत्सव, कालाभाम महोत्सव, नवरात्रि।
सर्वाणी शक्ति पीठ मंदिर (Shravani Shakti Peeth) में कौनसी भाषा बोली जाती है?
तमिल, इंग्लिश, हिंदी।
सर्वाणी शक्ति पीठ मंदिर (Shravani Shakti Peeth) में दर्शन करने के उत्तम समय कब होता है?
अक्टूबर से मार्च तक।
Share this content: