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सबरीमाला मंदिर के रोचक तथ्य और चौकाने वाले रहस्य क्या है? | Sabarimala Mandir Ki Kahani in 2024

Sabarimala Mandir Ki Kahani : सबरीमाला दक्षिण भारत के प्रसिद्ध हिंदू मंदिरों में से एक है। इस मंदिर में प्रतिवर्ष करोड़ों की संख्या में श्रद्धालु दर्शन करने के लिए आते हैं। सबरीमाला मंदिर केरल राज्य में सहाद्री पर्वतमाला से घिरे हुए पठानमथिट्टा जिले में स्थित केरल की राजधानी तिरुवनंतपुरम से 175 किलोमीटर की दूर पर पम्पा नामक स्थान पम्पा से सबरीमाला तक पैदल यात्रा करनी पड़ती है। यह रास्ता पांच किलोमीटर लंबा है। यह मंदिर हिंदू ब्रह्मचार्य देवता अय्यप्पन को समर्पित है। मंदिर के चारों ओर टाइगर रिज़र्व का एक घना जंगल भी है।

सबरिमाला मंदिर का इतिहास

माना जाता है कि भगवान अयप्पा भगवान शंकर और मोहिनी के पुत्र थे। भगवान विष्णु को हरि और शिव को हर कहा जाता है। इसलिए इस आधार पर भगवान अयप्पा को हरिहर के नाम से भी जाना जाता है। मान्यता है कि सबरीमाला मंदिर का निर्माण हजारों साल पहले राजा राजशेखर ने कराया था। पम्पा नदी के किनारे राजा राजशेखर को भगवान अयप्पा बाल रूप में मिले थे और वह उन्हें अपने महल ले आए।

इसके बाद महल में रानी ने एक पुत्र को जन्म दिया। लेकिन चूँकि राजा नहीं, भगवान अयप्पा को अपना पुत्र माना था इसलिए वो पहले अयप्पा को राज़ सौंपना चाहते थे, जबकि रानी को यह मंजूर नहीं था। रानी अपनी तबियत का बहाना बनाकर अयप्पा को शेरनी का दूध लाने के लिए जंगल भेज दिया। जंगल में य पाने एक राक्षसी का वध कर दिया, जिससे खुश होकर इंद्र ने शेरनी को अयप्पा के साथ महल भेजा। यह देखकर लोगों को बहुत आश्चर्य हुआ।

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पिता ने जब अयप्पा को राजा बनने को कहा तो उन्होंने मना कर दिया और महल से गायब हो गए। काफी दिनों बाद भगवान अयप्पा ने पिता को दर्शन दिया और उस स्थान पर मंदिर बनवाने को कहा। जिसके बाद राजा राजशेखर ने ही वहाँ सबरीमाला मंदिर का निर्माण कराया।

Sabarimala Mandir in Hindi 2024

विशेषताविवरण
स्थानपतनमतिट्टा जिले, केरल, भारत
समर्पणभगवान अयप्पा
प्रकारहिंदू मंदिर
निर्माण12वीं शताब्दी
मंदिर का मुख्य देवताभगवान अयप्पा
मंदिर का मुख्य त्योहारमकर संक्रांति
मंदिर की यात्रा करने के लिए आवश्यक41 दिन की कठोर तपस्या
मंदिर में प्रवेश पर प्रतिबंध10 से 50 वर्ष की आयु की महिलाओं के लिए (2018 से पहले)
मंदिर में प्रवेश पर प्रतिबंध का हटानासुप्रीम कोर्ट द्वारा 28 सितंबर 2018 को

सबरीमाला मंदिर के रोचक तथ्य

इस मंदिर की कई विशेषताएँ हैं जिसके कारण देश के कोने कोने से श्रद्धालु इस मंदिर में दर्शन के लिए पहुंचते हैं। तो आइए दोस्तों जानते हैं सबरीमाला मंदिर के बारे में कुछ रोचक तथ्य। यदि आप सबरीमाला मंदिर में नहीं गए हैं तो आपको बता दें कि इस मंदिर में जाने से पहले पम्पा नदी में स्नान करना पड़ता है और फिर एक दीपक जलाकर नदी में प्रवाहित करने के बाद ही मंदिर में प्रवेश दिया जाता है।

सबरीमाला मंदिर अन्य मंदिरों की तरह पूरे साल नहीं खुला रहता बल्कि अमन दें। श्रद्धालुओं के लिए सिर्फ नवंबर से जनवरी तक खुला रहता है और इसके बाद इसे बंद कर दिया जाता है। इस मंदिर में भगवान की प्रत्येक पूजा में घी का अभिषेक किया जाता है। मंदिर में जो भी श्रद्धालु घी लेकर जाते है उसे एक विशेष पात्र में ही जमा किया जाता है और फिर इसे घी से भगवान अयप्पा का अभिषेक किया जाता है।

सबरीमाला मंदिर की खासियत यह है कि यह एक ऐसा मंदिर है जहाँ प्रत्येक वर्ष दो से 5,00,00,000 लोग दर्शन करने के लिए आते हैं। यह मंदिर 18 पहाड़ियों के बीच बना है और इसकी विशेषता यह है कि प्रत्येक पहाड़ी में एक मंदिर स्थित है।

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सबरी मला मंदिर में जाने से पहले मस्जिद में क्यों जाते है भक्त

सबरीमाला के रास्ते में एक छोटा सा कस्बा पड़ता है। ये कस्बा स्वामी के मंदिर से करीब 60 किलोमीटर पहले पड़ता है। तीर्थ यात्रा के दौरान श्रद्धालुओं को यहाँ रुकना होता है और यहाँ एक सफेद भव्य मस्जिद भी है, जिसे बाबर मस्जिद के नाम से जाना जाता है। इस मस्जिद में श्रद्धालु बड़ी श्रद्धा के साथ प्रवेश करते हैं और भगवान स्वामी का जयकारा लगाते हुए मस्जिद की परिक्रमा करके।

साथ ही यहाँ श्रद्धालु विभूति और काली मिर्च का प्रसाद लेकर यात्रा के लिए आगे बढ़ते। खास बात तो ये भी है कि जब ये तीर्थयात्री अपने रीती रिवाज के अनुरूप मस्जिद में पूजा पाठ करते हैं तो उसी वक्त नमाज़ भी जारी रहती है। बता दें कि मस्जिद की परिक्रमा करने की परंपरा पिछले 500 साल से भी अधिक समय से चल रही है। विशेष रूप से सजाए गए हाथी के साथ जुलूस पहले मस्जिद पहुंचता है इसके बाद पास के दो हिंदू मंदिरों में जाता है।

बल्कि मस्जिद कमेटी हर साल सबरीमाला मंदिर से अपने रिश्ते का उत्सव बनाती है। इस उत्सव को चंदन कुमकुम कहा जाता है। दरअसल, सबरीमाला का मंदिर मक्का मदीना के बाद ये दुनिया का सबसे बड़ा तीर्थ स्थल माना जाता है, जहाँ हर साल करोड़ों की संख्या में श्रद्धालु दर्शन करने आते हैं। साथ ही श्रद्धालुओं का मस्जिद में पूजा पाठ करने का ये नाम हिंदू मुस्लिम के प्रति भाईचारा की भावना को बढ़ावा देता है, जो धर्मों के बीच सौहार्द बढ़ाने वाली एक मिसाल है।

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सबरीमाला मंदिर में 18 सीढ़ियां क्यों हैं?

दोस्तों आपको बता दें कि सबरीमाला की 18 सीढ़िया बहुत प्रसिद्ध है। इनमें से पहली पांच सीढ़ियां व्यक्ति के पांच इंद्रियों, आठ सीढ़ियां मानवीय भावनाओं की और तीन सीढ़ियां मानवीय गुणों की, जबकि अंत की दो सीढ़ियां ज्ञान और अज्ञान का प्रतीक है। यह मंदिर भारत के अन्य मंदिरों से काफी अलग है। मंदिर में प्रवेश के लिए श्रद्धालुओं को 18 पवित्र सीढ़ियां चढ़नी पड़ती है और ये सीढ़ियां सिर्फ वही लोग चढ़ते हैं जिन्होंने 41 दिनों का कठिन उपवास पूरा किया हो। सबरीमाला मंदिर की 18 सीढ़िया चढ़ते समय श्रद्धालुओं को सीढ़ी के पास घी से भरा नारियल फोड़ना होता है। नारियल का एक टुकड़ा हवन कुंड में डाला जाता है, जबकि दूसरा टुकड़ा प्रसाद के रूप में श्रद्धालु अपने साथ ले जाते हैं।

सबरीमाला मंदिर में महिलाओं का प्रवेश वर्जित क्यों है?

इस मंदिर में स्थापित भगवान अयप्पा ब्रह्मचारी थी, इसलिए सदियों से इस मंदिर में ही सिर्फ पुरुष श्रद्धालु ही दर्शन करने के लिए जाते थे। अन्य मंदिरों की उपेक्षा सबरीमाला मंदिर के नियम भी बहुत कड़े हैं। इसलिए श्रद्धालुओं को मंदिर में प्रवेश करने के लिए सभी नियमों का पालन करना आवश्यक है। सबरीमाला मंदिर में आने के लिए श्रद्धालुओं को 41 दिनों का व्रत रखना पड़ता है क्योंकि पीरियड्स के कारण महिलाएं यह व्रत पूरा नहीं कर पाती इसलिए उन्हें इस मंदिर में प्रवेश नहीं दिया जाता। लेकिन पुरुषों को यह व्रत पूरा करके ही मंदिर में आना होता है।

सबरिमाला मंदिर के चौकाने वाले रहस्य

अब अब जानते हैं सबरिमाला मंदिर के चौंकाने वाला रहस्य के बारे में। मकर संक्रांति के दिन दिखाई देती है रहस्यमय ज्योति अय्यप्पा स्वामी के मंदिर के पास आकाश में मकर संक्रांति की रात को घने अंधेरे में रह रहकर यहाँ एक ज्योति दिखाई देती हैं। बताया जाता है कि जब जब ये रौशनी दिखती है, इसके साथ शोर भी सुनाई देता है। दर्शन करने आते हैं लाखों भक्त इस ज्योति के दर्शन के लिए दुनिया भर से लाखों श्रद्धालु हर साल आते हैं।

भक्त मानते है की ये देव ज्योति है और भगवान इसे जलाते हैं। इस मकर संक्रांति ज्योति की पूजा होती है। मकर ज्योति तारा मंदिर प्रबंधन के पुजारियों के अनुसार मकर माह के पहले दिन आकाश में दिखने वाला एक खास तारा मकर ज्योति है। मकर ज्योति सूरज के बाद दूसरा सबसे चमकीला तारा है, जो हमारे आसमान में दिखता है, जिसकी रौशनी दिखाई देती है। हालांकि लोगों का मानना कुछ और ही है क्योंकि यदि ऐसा होता तो यह ज्योति और कहीं भी दिखाई देती।

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सबरीमाला जाने से पहले क्या करना चाहिए?

मंदिर में जाने से पहले सबरीमाला के तीर्थयात्रियों को नीले या काले रंग के कपड़े पहनने पड़ते हैं। जब तक यात्रा पूरी ना हो जाए तब तक वे अपनी दाढ़ी मूंछ नहीं बनवा सकते। सबरीमाला तीर्थयात्रा के दौरान प्रत्येक श्रद्धालु को अपने माथे पर चंदन का लेप लगाना आवश्यक है। इसके अलावा पम्पा नदी में स्नान करने के बाद गणपति की पूजा भी करनी पड़ती है और फिर मंदिर की ओर प्रस्थान किया जाता है।

सबरिमला मंदिर विवाद क्या है?

इस मंदिर में प्रवेश करते समय श्रद्धालुओं को उत्तम 80 मंत्र का जाप करना पड़ता है। इस मंत्र का अर्थ है वह तुम ही हो दोस्तों। आपको बता दें कि केरल के सबरीमाला मंदिर में 10 से 50 वर्ष की आयु की महिलाओं के प्रवेश पर प्रतिबंध है। करीब 800 साल पुराने इस मंदिर में यह मान्यता पिछले काफी समय से चल रही थी। माना जाता है कि भगवान अयप्पा अविवाहित थे और हिंदू धर्म में पीरियड्स के दौरान महिलाओं को पवित्र माना जाता है, जिसके कारण उन्हें इस मंदिर में प्रवेश की अनुमति नहीं थी। हालांकि 28 सितंबर 2018 को सर्वोच्च न्यायालय ने इस महिलाओं के प्रवेश पर प्रतिबंध को असंवैधानिक और भेदभावपूर्ण घोषित किया। 2 जनवरी 2019 को 50 साल से कम उम्र की दो महिलाओं ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद पहली बार सबरीमाला मंदिर में पूजा पाठ किया।

FAQS : Sabarimala Mandir Ki Kahani

सबरीमाला मंदिर का दूसरा नाम क्या है?

सबरीमाला मंदिर का दूसरा नाम श्रीधर्मषष्ठ मंदिर है।

सबरीमाला मंदिर में किसकी मूर्ति है?

सबरीमाला मंदिर में भगवान अयप्पा की मूर्ति है। अयप्पा को भगवान शिव और मोहिनी (भगवान विष्णु का रूप) का पुत्र माना जाता है। उन्हें बाल रूप में दर्शाया जाता है, उनके एक हाथ में तलवार और दूसरे हाथ में कमल का फूल होता है।

सबरीमाला में किस महिला ने प्रवेश किया?

सबरीमाला मंदिर में प्रवेश करने वाली पहली महिला बिंदु अम्मिनी और कनकदुर्गा थीं। दोनों महिलाओं ने 2 जनवरी 2018 को मंदिर में प्रवेश किया। इससे पहले, मंदिर में 10 से 50 वर्ष की आयु की महिलाओं के प्रवेश पर प्रतिबंध था।

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