Mallikarjuna Jyotirlinga Ki Kahani : मित्रों, आज हम आप लोगों के लिए लाए हैं भगवान शिव के दूसरे ज्योतिर्लिङ्ग की कहानी मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिग, जो श्रीसेलम आंध्र प्रदेश में स्थित है तो मित्रों आज हम इसकी कहानी विस्तार से जानेगें तो एक बार फिर से आप सभी का बहुत बहुत स्वागत है। तो चलिए मित्रों भगवान मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिग के बारे में हम आगे जानते ये हम 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है और भगवान शिव के भक्तों के लिए पूजा की एक बहुत ही प्राचीन जगह यह सभी ज्योतिर्लिंगों में से सबसे ज्यादा अद्वित्य इसीलिए क्योंकि इसमें भगवान शिव और माता पार्वती दोनों ही मौजूद है। मल्लिकार्जुन दो शब्दों के मेल से बनाए, जिसमें मल्लिका का माता पार्वती और अर्जुन का भगवान शिव से है।

मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिग की पौराणिक कथा – Mythology of Mallikarjuna Jyotirlinga
मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग की पौराणिक कथा भगवान शिव और माता पार्वती, गणेश और कार्तिकेय की प्रतियोगिता से जुड़ी हुई है।
कथा के अनुसार, एक दिन भगवान शिव और माता पार्वती ने अपने दोनों पुत्रों, गणेश और कार्तिकेय, को एक प्रतियोगिता में भाग लेने के लिए कहा। प्रतियोगिता का उद्देश्य यह था कि कौन पहले ब्रह्मांड के चारों ओर परिक्रमा करेगा।
गणेश ने अपने बुद्धिमान दिमाग का उपयोग करके प्रतियोगिता जीत ली। उन्होंने ब्रह्मांड के चारों ओर परिक्रमा करने के लिए एक सर्कल की परिक्रमा की। कार्तिकेय ने अपनी शक्ति का उपयोग करके प्रतियोगिता जीतने की कोशिश की, लेकिन वे गणेश से हार गए।
गणेश की जीत से प्रसन्न होकर, भगवान शिव ने उन्हें सभी देवताओं का प्रधान बनाया। उन्होंने कार्तिकेय को दक्षिण दिशा की रक्षा का दायित्व सौंपा।
कार्तिकेय ने इस दायित्व को निभाने के लिए श्रीशैलम पर्वत पर मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग की स्थापना की। यह मंदिर भगवान शिव और माता पार्वती को समर्पित है।
एक अन्य पौराणिक कथा के अनुसार, भगवान शिव ने स्वयं इस ज्योतिर्लिंग की स्थापना की थी। वे अपने पुत्र कार्तिकेय से मिलने के लिए दक्षिण भारत आए थे। कार्तिकेय ने अपने पिता का स्वागत करने के लिए श्रीशैलम पर्वत पर एक शिवलिंग की स्थापना की।
मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग को दक्षिण का कैलाश भी कहा जाता है। यह मंदिर पातालगंगा के तट पर स्थित है। पातालगंगा को भगवान शिव की जटाओं से निकली नदी माना जाता है।
मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिग की जानकारी
विशेषता | जानकारी |
स्थान | आंध्र प्रदेश के कृष्णा जिले में श्रीशैलम पर्वत पर |
ज्योतिर्लिंग संख्या | 12 |
लिंग का नाम | मल्लिकार्जुन |
भगवान का नाम | भगवान शिव |
देवी का नाम | माता पार्वती |
आरती का समय | सुबह 4:00 बजे सुबह 7:00 बजे, सुबह 10:00 बजे, शाम 6:00 बजे, रात 10:30 बजे |
प्रसाद | दूध, दही, शहद, घी, बेलपत्र, फूल, धूप, दीप, नैवेद्य, पातालगंगा का जल |
दर्शन के लाभ | सभी कष्टों से मुकिी, जीवन में सुस्, शांति और समृद्धि की प्राप्ति, मन की शांति और आमिक उजति, सभी मनोकामनाओं की पूर्ण, विशेष रूप से पुत्र प्राप्ति की मनोकामना की पूर्ति |
जाने के लिए निकटतम स्टेशन | कुरनूल सिटी रेल्वे स्टेशन |
मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिग से जुड़े रोचक तथ्य – Mallikarjuna Jyotirlinga Facts
- मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग भारत के आंध्र प्रदेश राज्य के कृष्णा जिले में श्रीशैलम पर्वत पर स्थित है। यह 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है।
- मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग को “दक्षिण का कैलाश” भी कहा जाता है।
- मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग के बारे में एक पौराणिक कथा है कि जब कार्तिकेय पृथ्वी की परिक्रमा कर वापस आए तो यह सब देख कर चौक गए। गुस्से में विशाल पर्वत की ओर चल दिए।
- कार्तिकेय को मनाने के लिए माता पार्वती भी पर्वत पर पहुंची।
- इसके बाद भगवान शिव ने वहां ज्योतिर्लिंग के रूप में प्रकट होकर अपने दर्शन दिए। तभी से शिव का यह ज्योतिर्लिंग मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग के नाम से विख्यात हुआ।
- मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग मंदिर में भगवान शिव के साथ माता पार्वती, भगवान कार्तिकेय और भगवान गणेश की भी मूर्तियां हैं।
- मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग मंदिर में एक प्राचीन कुंड है जिसे “अमृत कुंड“ कहा जाता है। इस कुंड का पानी पवित्र माना जाता है।
- मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग मंदिर की वास्तुकला अद्भुत है। मंदिर का निर्माण काले ग्रेनाइट पत्थरों से किया गया है।
- मंदिर के परिसर में एक विशाल शिवलिंग है जिसे “मल्लिकार्जुन लिंगम“ कहा जाता है। यह लिंगम लगभग 100 फीट ऊंचा है।
- मंदिर के परिसर में एक विशाल नंदी की मूर्ति भी है। यह मूर्ति लगभग 30 फीट ऊंची है।
मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिग की विशेषता – Importance Of Mallikarjuna Jyotirlinga
मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग की कुछ विशेषताएं निम्नलिखित हैं:
दक्षिण का कैलाश: मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग को दक्षिण का कैलाश भी कहा जाता है। यह मंदिर श्रीशैलम पर्वत पर स्थित है, जिसे दक्षिण का कैलाश भी माना जाता है।
पातालगंगा: मल्लिकार्जुन मंदिर पातालगंगा के तट पर स्थित है। पातालगंगा को भगवान शिव की जटाओं से निकली नदी माना जाता है।
महाशिवरात्रि का मेला: मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग के दर्शन के लिए प्रतिवर्ष लाखों श्रद्धालु आते हैं। विशेष रूप से महाशिवरात्रि के दिन यहां भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है।
मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिग की कहानी – Mallikarjuna Jyotirlinga Ki Kahani
मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिग छठवीं और सातवीं शताब्दी के सबसे महत्वपूर्ण स्थानों में वर्णित किया गया मल्लिकाअर्जुन एक शक्तिपीठ के रूप में भी जाना जाता है। मल्लिकाअर्जुन 52 शक्तिपीठों में से एक है।
जब भगवान शिव ने अपनी पति सती के जल जाने पर उसके शव को लेकर पूरे ब्रह्मांड में तांडव किया था तब उनके शरीर के अंगों को भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन से काट दिया था, जो 52 स्थानों पर जा गिरे थे।
इन्हीं स्थानों को शक्तिपीठ के नाम से जाना जाता है। ऐसा कहा जाता है कि सती के होंठ का ऊपरी हिस्सा मल्लिकाअर्जुन में गिरा था, इसलिए ये स्थान हिंदुओं के लिए और ज्यादा महत्वपूर्ण है।
मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिग की एक दंतकथा यह भी है कि मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिग को लेकर कई सारी कहानी और दंतकथाएं हैं, जिनमें से कुछ इस प्रकार है शिवपुराण में कोटिरुद्रसंहिता के 15 वें अध्याय में यह कहानी उल्लेखित है।
कहानी ये है की चंद्रवती नामक राजकुमारी थी। ये वो कहानी है जो कि मल्लिकार्जुन की दीवारों पर लिखी हुई है।
चंद्रवती राजकुमारी के जन्म को लेकर बहुत सी कथाएं हैं। उनके जन्म से लेकर उनके रहन सहन तक जब वो पैदा हुई और वो बहुत सारी रहती थीं लेकिन उन्हें ये सब त्याग दिया और अपना जीवन तपस्या में बिताने लगी।
वो कदाली जंग में ध्यान लगाये हुए थीं। उन्हें कुछ महसूस हुआ। उन्होंने देखा की एक कपिला गाय बेल वृक्ष के पास है और अपने दूध से वहाँ के एक स्थान को धुल रही है। ऐसा हर दिन होता था।
1 दिन जाकर राजकुमारी ने उस स्थान को देखा और वहाँ खुदाई की। यहाँ उसे एक शिवलिंग प्राप्त हुई जो कि अग्नि लोगों की तरह दिख रही थी। इस प्रकार इस शिवलिंग की स्थापना हुई।
कहा जाता है की चंद्रवती भगवान शिव की बहुत बड़ी भक्त थीं और जब उनका अंत समय आ गया था तो वो हवा के साथ साथ कैलाश उड़ गए। उन्हें मोक्ष मिल गया।
मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिग का महत्त्व ऐसा माना जाता है की यहाँ पूजा अर्चना करने से व्यक्ति को स्वास्थ्य और धन की प्राप्ति होती है।

मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग कैसे पहुंचे
मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग भारत के आंध्र प्रदेश राज्य के कृष्णा जिले में श्रीशैलम पर्वत पर स्थित है। यह 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है।
सड़क मार्ग से : मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग सड़क मार्ग से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है। देश के सभी प्रमुख शहरों से श्रीशैलम के लिए नियमित बसें और ट्रेनें उपलब्ध हैं।
रेल मार्ग से : श्रीशैलम के लिए निकटतम रेलवे स्टेशन मार्कापुर है। यह स्टेशन मुंबई, चेन्नई, हैदराबाद, दिल्ली और अन्य प्रमुख शहरों से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है। मार्कापुर से श्रीशैलम के लिए टैक्सी या बस ले सकते हैं।
हवाई मार्ग से: श्रीशैलम के लिए निकटतम हवाई अड्डा हैदराबाद है। हैदराबाद से श्रीशैलम के लिए बसें और टैक्सी उपलब्ध हैं।
यह भी पढ़ें: सोमनाथ मंदिर के ज्योतिर्लिङ्ग का इतिहास और चौकाने वाले रहस्य
शिवरात्रि के दिन मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिग की पूजा का क्या है महत्व
शिवरात्रि के दिन मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग की पूजा का विशेष महत्व है। इस दिन इस ज्योतिर्लिंग के दर्शन और पूजा करने से सभी कष्टों से मुक्ति मिलती है। साथ ही यहां पूजा-पाठ करने से जीवन में सुख, शांति और समृद्धि की प्राप्ति होती है।
मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है। यह ज्योतिर्लिंग आंध्र प्रदेश के कृष्णा जिले में श्रीशैलम नाम के पर्वत पर स्थित है। यह मंदिर भगवान शिव और माता पार्वती को समर्पित है।
महाशिवरात्रि के दिन मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग के दर्शन के लिए लाखों श्रद्धालु आते हैं। इस दिन मंदिर में विशेष पूजा-अर्चना और अनुष्ठान किए जाते हैं। भक्तों का मानना है कि इस दिन इस ज्योतिर्लिंग के दर्शन और पूजा करने से भगवान शिव प्रसन्न होते हैं और भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी करते हैं।
मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग को दक्षिण का कैलाश भी कहा जाता है। इस मंदिर में भगवान शिव की पूजा विशेष रूप से पातालगंगा के जल से की जाती है। पातालगंगा को भगवान शिव की जटाओं से निकली नदी माना जाता है।
मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिग में आरती का समय
आरती का नाम | समय |
भस्म आरती | सुबह 4:00 बजे |
बाल भोग आरती | सुबह 7:00 बजे |
नैवेद्य आरती | सुबह 10:00 बजे |
संध्या आरती | शाम 6:00 बजे |
शयन आरती | रात 10:30 बजे |
मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिग के दर्शन करने से क्या लाभ होता है?
मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिग के दर्शन करने से निम्नलिखित लाभ होते हैं:
- भक्तों के सभी कष्ट दूर होते हैं।
- जीवन में सुख, शांति और समृद्धि की प्राप्ति होती है।
- मन की शांति और आत्मिक उन्नति होती है।
- भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं।
- विशेष रूप से, मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिग के दर्शन करने से पुत्र प्राप्ति की मनोकामना पूरी होती है।
- इसलिए इस मंदिर को “पुत्रदा एकवीरा“ भी कहा जाता है।
तो मित्रों ये थी मल्लिकार्जुन, दूसरे मल्लिका ज्योतिर्लिग की कहानी। हम आप लोगों के लिए आगे भी और ज्योतिर्लिंगों की कहानी लाएंगे।
FAQS:
क्या हम मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिग को छू सकते हैं?
नहीं, मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिग को छूना मना है।
मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिग में क्या प्रसाद चढ़ता है?
मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग में मुख्य रूप से दूध, दही, शहद, घी, बेलपत्र, फूल, धूप, दीप और नैवेद्य चढ़ाया जाता है। मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग मंदिर में प्रसाद के रूप में भगवान शिव को विशेष रूप से पातालगंगा का जल चढ़ाया जाता है। पातालगंगा को भगवान शिव की जटाओं से निकली नदी माना जाता है।
मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिग जाने के लिए कौन सा स्टेशन है?
मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिग जाने के लिए कुरनूल सिटी रेल्वे स्टेशन सबसे नजदीक का स्टेशन है। यह स्टेशन श्रीशैलम से लगभग 180 किलोमीटर दूर है। कुरनूल सिटी रेल्वे स्टेशन से श्रीशैलम जाने के लिए बस, टैक्सी या प्राइवेट वाहन की सुविधा उपलब्ध है।
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[…] मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिग की पौराणिक … December 29, 2023 0 Comments […]