Jagadhatri Puja 2023 | जगद्धात्री पूजा कब है | Jagadhatri Puja Kab Hai | जगद्धात्री पूजा कथा, महत्व, इतिहास, और पूजा विधि | Jagadhatri Puja Vidhi Katha Mahatva History in Hindi
जगद्धात्री पूजा हिंदू धर्म का एक प्रमुख त्योहार है जो कार्तिक महीने के शुक्ल पक्ष की अष्टमी के दिन मनाया जाता है। यह दुर्गा पूजा के ठीक एक महीने बाद मनाई जाती है। इस त्योहार में मां जगद्धात्री की पूजा की जाती है, जो मां दुर्गा की ही एक स्वरूप हैं।
जगद्धात्री का अर्थ है “जगत की अधिष्ठात्री“। यह नाम देवी दुर्गा की शक्ति और महिमा को दर्शाता है। देवी जगद्धात्री को ब्रह्मांड की पालनहारी देवी माना जाता है।
जगद्धात्री पूजा चार दिन की होती है। इस दौरान, लोग देवी जगद्धात्री की पूजा करते हैं। पूजा में देवी जगद्धात्री की मूर्ति को फूल, धूप, मिठाई और अन्य अर्पितियां अर्पित की जाती हैं। देवी जगद्धात्री के लिए भजन और आरती भी की जाती है।
जगद्धात्री पूजा कब मनाई जाती हैं (Jagadhatri puja Date 2023)
जगद्धात्री पूजा कार्तिक महीने के शुक्ल पक्ष की अष्टमी के दिन मनाई जाती है। यह दुर्गा पूजा के ठीक एक महीने बाद मनाई जाती है। जगद्धात्री पूजा का दिन हिंदू कैलेंडर के अनुसार हर साल बदलता रहता है। 2023 में, जगद्धात्री पूजा 21 नवंबर को मनाई जाएगी।
जगद्धात्री पूजा चार दिन की होती है। इस दौरान, लोग देवी जगद्धात्री की पूजा करते हैं, जो मां दुर्गा का ही एक रूप हैं। देवी जगद्धात्री को ब्रह्मांड की पालनहारी देवी माना जाता है।
जगद्धात्री पूजा का मुख्य उद्देश्य देवी जगद्धात्री की कृपा प्राप्त करना और जीवन में सुख, समृद्धि और शांति प्राप्त करना है।

जगद्धात्री पूजा – Jagadhatri Puja
दिन | पूजा | महत्व |
पहला दिन | घर और मंदिरों की सफाई, देवी जगद्धात्री की मूर्ति की स्थापना, फूल, धूप, मिठाई और अन्य अर्पितियां अर्पित करना | देवी जगद्धात्री का आगमन |
दूसरा दिन | देवी जगद्धात्री की पूजा, भजन और आरती | देवी जगद्धात्री की कृपा प्राप्त करना |
तीसरा दिन | देवी जगद्धात्री की पूजा, भजन और आरती | देवी जगद्धात्री का आशीर्वाद प्राप्त करना |
चौथा दीन | देवी जगद्धात्री की मूर्ति का विसर्जन | देवी जगद्धात्री की मूर्ति का विसर्जन |
जगद्धात्री पूजा का इतिहास (Jagadhatri puja History in Hindi)
नदिया जिले के कृष्णानगर राजधानी में महाराजा कृष्ण चंद्र का नगर है। यहाँ पर जो है वो हर साल दुर्गा पूजा के आयोजन करते थे और आज भी उनके परिवार में दुर्गापूजा और जगद्धात्री पूजा दोनों मनाये जाते थे। पर पहले जो है वह केवल दुर्गा पूजा ही आयोजित करते थे। पर नवाब ने जो है उन्हें एक बार बंदी बना लिया था किसी कारणवश और उस बार वो दुर्गा पूजा का आयोजन अपने नगर में नहीं कर पाए तो राजबाड़ी में दुर्गापूजा ना करने के कारण उनके मन में बहुत ही ज्यादा दुख था और जीस दिन वो मुक्त हुए। यानी की कारागार से वह मुक्त हुए।
उस दिन जो है विजयदशमी था तो माँ के विसर्जन का समय हो गया था तो इसलिए उस साल के लिए वो दुर्गा पूजा नहीं कर पाए पर दुर्गा पूजा ना करने की जो खेद है उनके मन में बहुत बुरी तरीके से बैठ गया था और वह बहुत दुखी हो गए थे क्योंकि वो शाक्त पन्था के एक नियम के अनुसार हर साल दुर्गा पूजा का आयोजन करते थे तो माँ ने रात्रि में ही उन्हें स्वप्न में दर्शन दिया और कहा दुर्गा पूजा ना करने की कारण दुखी होने की कोई जरूरत नहीं है।
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अक्षय नवमी जैसे कि दुर्गा नवमी के नाम से जाना जाता है। उस दिन इस तप्त कंचन वरना चतुर्भुज सिंह वाहिनी दुर्गा मूर्ति की उपासना वो करे और पूरे विधि विधान के साथ जो कि दुर्गा पूजा की विधि विधान है, उसी नियम के साथ संपूर्णता से इस पूजा का आयोजन करें और इसके प्रचार भी करें। अर्थात जो है लोगों में इसके उत्सव के तौर पर प्रचार करें तो महाराजा कृष्ण चंद ने माँ के आदेश का पालन करते हुए जो है अगले अक्षय नवमी यानी कि दीपावली के बाद जो उस शुक्ल नवमी आता है उस समय जो हैं उन्होंने माँ के इस जगद्धात्री दुर्गा रूप की पूजा की संपूर्ण आयोजन किए और दुर्गा पूजा में जीस तरीके से वह व्यवस्था करते थे।
पूरे उसी तरीके से उन्होंने इस पूजा की भी व्यवस्था की है और माँ की एक कृपा से जो है उनके ये जो पूजा है। अर्थात जो दुर्गा पूजा दूर जगधात्री पूजा के नाम से विख्यात हुआ। जगधात्री रूप में ये जो है माँ ने संपूर्णता से उनके इस पूजा को श्रीकारा। और इसके बाद से ही बंगाल में जगद्धात्री पूजा को दूसरी दुर्गा पूजा के नाम से जाना गया, क्योंकि दुर्गा पूजा ना करने के कारण जगद्धात्री पूजा करने के बारे में मान्य आदेश दिया था। तो आज भी इसी नियम का पालन करते हुए जो है ना कई परिवार जो कि दुर्गापूजा के आयोजन नहीं कर पाते हैं, वो जगधात्री पूजा के माध्यम से जो है, रामा की दुर्गा रूप की आराधना करते हैं।
ये एक दिवसीय पूजा होता है और एक ही दिन में तीन प्रहर में इसकी पूजा करना होता है। ये पूजा जो होता है पूर्वाह्न, मध्याह्न और अपराण इन तीन समय में करना होता है। एक ही दिन में सूर्योदय से लेकर सूर्यास्त तक यह अक्षय नवमी के दिन यह पूजन की आ जाता है। और दोस्तों ये जो जगद्धात्री पूजा है, इसमें माँ को जगधात्री दुर्गा दिव्या कहा गया है अर्थात यह माँ की दुर्गा रूप ही है जो कि चतुर्भुज रूप है। वैसे तो माकी के सिंह भाई ने रूप की। पूजा उत्सव के तौर पर जगधात्री पूजा प्रचलन से पहले भी जो है, प्रचलित था। बंगाल में और पूर्वी भारत के कई जगह पर। और उत्सव के तौर पर महाराजा कृष्ण चंद ने ही पहली बार इसके आयोजन किए और दुर्गा पूजा की।
इस जगह पर था दुर्गा पूजा की विकल्प अनुष्ठान के तौर पर क्योंकि जगद्धात्री पूजा आयोजित हुई इसलिए जो है इसे दूसरी। दुर्गा पूजा के नाम से यानी की दीदियां दुर्गा पूजा के नाम से भी जाना जाने लगा और इसके बाद से कई लोग जो है बहुत बड़ी तौर पर अपने घर पे जो लोग बहुत बड़े तौर पर जो है दुर्गापूजा का आयोजन अपने घर पर नहीं कर पाते थे। पूजा के आयोजन के माध्यम से हर साल माँ की आराधना करते थे और ऐसे कई परिवार हैं जिनकी पूजा 250-300 साल पुराने हैं, जो कि जगधात्री पूजा आज भी वो करते आ रहे हैं।
जगद्धात्री मैला उत्सव (Jagadhatri Mela Utsav)
- जगद्धात्री मैला उत्सव अपने जीवंत वातावरण, रंगीन सजावट और पारंपरिक हस्तशिल्प, खाद्य पदार्थ और धार्मिक वस्तुओं की विविधता के लिए प्रसिद्ध है। मेले के दौरान, मेला स्थल एक जीवंत गतिविधि का केंद्र बन जाता है, जहां हजारों आगंतुक उत्सवों को देखने के लिए आते हैं।
- जगद्धात्री मैला उत्सव का मुख्य आकर्षण भव्य पंडाल है, जो एक अस्थायी संरचना है जो जटिल नक्काशी और चमकदार रोशनी से सुसज्जित है। इस पंडाल में मां जगद्धात्री की मूर्ति होती है, जिसकी भक्तों द्वारा श्रद्धापूर्वक पूजा की जाती है।
- सांस्कृतिक कार्यक्रम, जिनमें पारंपरिक नृत्य, संगीत और नाटक शामिल हैं, जगद्धात्री मैला उत्सव का एक प्रमुख आकर्षण हैं। मेले में पारंपरिक बंगाली हस्तशिल्प से लेकर स्वादिष्ट मिठाई और व्यंजनों तक की एक विस्तृत श्रृंखला बेचने वाले कई स्टॉल भी होते हैं। आगंतुक स्थानीय व्यंजनों का आनंद ले सकते हैं, स्मृति चिन्ह खरीद सकते हैं और क्षेत्र की जीवंत सांस्कृतिक पृष्ठभूमि में खुद को डुबो सकते हैं।
- जगद्धात्री मैला उत्सव केवल एक धार्मिक उत्सव नहीं है; यह एक महत्वपूर्ण आर्थिक और सामाजिक घटना भी है। मेला स्थानीय कारीगरों और विक्रेताओं के लिए रोजगार के अवसर प्रदान करता है, और यह दूर-दूर से आगंतुकों को आकर्षित करता है, जिससे स्थानीय अर्थव्यवस्था को बढ़ावा मिलता है। इसके अलावा, मेला समुदाय की भावना और सांस्कृतिक आदान-प्रदान को बढ़ावा देता है, लोगों को पश्चिम बंगाल के समृद्ध परंपराओं का जश्न मनाने के लिए एक साथ लाता है।
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जगद्धात्री पूजा का महत्व – (Jagadhatri Puja Ka Mahatva)
जगद्धात्री पूजा हिंदू धर्म का एक प्रमुख त्योहार है जो कार्तिक महीने के शुक्ल पक्ष की अष्टमी के दिन मनाया जाता है। यह दुर्गा पूजा के ठीक एक महीने बाद मनाई जाती है। इस त्योहार में मां जगद्धात्री की पूजा की जाती है, जो मां दुर्गा की ही एक स्वरूप हैं।
जगद्धात्री पूजा का महत्व इस प्रकार है:
मां जगद्धात्री को ब्रह्मांड की पालनहारी देवी माना जाता है। वे शेर की सवारी करती हैं और उनके चार हाथ हैं। उनके हाथों में शंख, चक्र, धनुष, और तीर हैं। मां जगद्धात्री की तीन आंखें हैं और उनका मुख सूर्य की तरह लाल है।
पौराणिक कथाओं के अनुसार, मां जगद्धात्री ने राक्षस महिषासुर का वध किया था। महिषासुर एक शक्तिशाली राक्षस था जिसने तीनों लोकों पर कब्जा कर लिया था। मां जगद्धात्री ने महिषासुर को हराकर तीनों लोकों को उसके अत्याचार से मुक्त कराया।
मां जगद्धात्री की पूजा करने से जीवन के सभी क्षेत्रों में सफलता और समृद्धि प्राप्त होती है। यह पूजा बुराई पर अच्छाई की जीत का भी संदेश देती है।
जगद्धात्री पूजा विधि (Jagadhatri puja Vidhi)
- पूजा क्षेत्र को अच्छी तरह से साफ करें और इसे फूलों, रंगोली और पारंपरिक रूपांकनों से सजाएं।
- पूजा क्षेत्र में एक पीतल के बर्तन में पानी भरकर एक वेदी पर रखें। यह बर्तन देवी जगद्धात्री की उपस्थिति का प्रतिनिधित्व करता है।
- पवित्र जल (गंगाजल) को अपने आप पर, पूजा क्षेत्र पर और देवी जगद्धात्री की मूर्ति पर छिड़ककर परिवेश को शुद्ध करें।
- बाधाओं को दूर करने वाले भगवान गणेश को फूल, धूप और मिठाई अर्पित करके उनका आह्वान करें। एक सफल पूजा के लिए उनकी कृपा मांगें।
- पूजा क्षेत्र के केंद्र में देवी जगद्धात्री की मूर्ति रखें। उन्हें फूल, धूप, मिठाई और एक लाल कपड़ा अर्पित करें।
- देवी जगद्धात्री की मूर्ति के चारों ओर एक जलती हुई दीप को लहराते हुए आरती अनुष्ठान करें।
- देवी जगद्धात्री को एक मुट्ठी फूल अंतिम अर्पिती के रूप में अर्पित करें, अपनी भक्ति और आभार व्यक्त करते हुए।
- देवी की स्तुति में भक्ति गीत गाकर एक आनंदमय और आध्यात्मिक रूप से उत्थानशील वातावरण बनाएं।
FAQ
जगद्धात्री पूजा कितने दिन की होती है?
जगद्धात्री पूजा का चार दिवसीय उत्सव होता है।
जगद्धात्री पूजा कौन मनाता है?
जगद्धात्री पूजा हिंदू धर्म के अनुयायी मनाते हैं। यह पूजा मुख्य रूप से बंगाल में मनाई जाती है, लेकिन भारत के अन्य हिस्सों में भी इसकी लोकप्रियता बढ़ रही है।
क्या दुर्गा और जगद्धात्री एक ही है?
हाँ, दुर्गा और जगधात्री एक ही हैं।
जगद्धात्री का असली नाम क्या है?
जगद्धात्री का असली नाम दुर्गा है।
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