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गंडकी चंडी शक्तिपीठ के आध्यात्मिक रहस्य और पौराणिक कथाएं | Gandaki Chandi Shakti Peeth History in Hindi

गंडकी चंडी शक्तिपीठ मंदिर (Gandaki Chandi Shakti Peeth) धार्मिक स्थलों में से एक हैं, जिसे एक प्रमुख शक्ति पीठ की मान्यता दी गई है। पौराणिक ग्रंथो के अनुसार इसी जगह पर माता सती का दायाँ गाल गिरा था। शक्ति पीठ के पास ही गंडकी नदी मौजूद हैं, जिसके बारे में अनेकों रहस्य बताए जाते हैं। एक मान्यता के अनुसार इसी नदी में शालिग्राम नामक पत्थर मौजूद हैं जोकि भगवान विष्णु का स्वरूप है। नदी से जुडी अनेकों कहानियां जुडी हैं, जिन्हें आप आर्टिकल में आगे पढेंगे।।

गंडकी चंडी शक्तिपीठ मंदिर का इतिहास | Gandaki Chandi Shakti Peeth in Hindi

गंडकी चंडी शक्तिपीठ (Gandaki Chandi Shakti Peeth) जिसे मुक्तिनाथ मंदिर के रूप में भी जाना जाता है। मुक्तिनाथ का अर्थ मुक्ति देने वाले भगवान है। ऐतिहासिक मान्यता के अनुसार इस मंदिर की नविन स्थापना 19वीं शताब्दी हुई थी। मंदिर में प्राचीन बैल मुख की सुन्दर संरचना देखी जा सकती है, जिनके मुख से जल की धारा गिरती रहती है, यह जल एक विशाल जल कुंड में गिरता है। इन सभी बैलों के मुख की संख्या 108 है, जोकि देखने में काफी रहस्यमई लगता है।

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गंडकी चंडी शक्तिपीठ मंदिर के आध्यात्मिक रहस्य | Gandaki Chandi Shakti Peeth Facts in Hindi

गंडकी चंडी शक्तिपीठ (Gandaki Chandi Shakti Peeth) स्थल माता गंडकी का अन्य स्वरूप है। एक मान्यता के अनुसार यहाँ पर पहले हिमघाटी के आलावा कुछ भी मौजूद नहीं था। तब ऋषि गंडक पहली बार यहाँ पर आए थे, जब वह यहाँ से गुजर रहे थे, तब उनके चरण स्पर्श से छेत्र में रहस्यमई बदलाव हुआ, परिणामस्वरूप गंडकी नदी निमित हुई। गंडकी शक्तिपीठ के साथ जुड़े ऐसे अनेकों रहस्य है जिन्हें आप आर्टिकल में आगे विस्तार से जानेंगे।

  • गंडकी चंडी मंदिर के पास ही माता सती के दाएं गाल का निपात हुआ था, परिणामस्वरूप इस स्थान को गंडकी चंडी शक्तिपीठ (Gandaki Chandi Shakti Peeth) के रूप में स्थापित कर दिया गया।
  • गंडकी चंडी शक्तिपीठ (Gandaki Chandi Shakti Peeth) के पास ही गंडकी नामक नदी बहती है, एक मान्यता के अनुसार इस नदी को ही माता सती का स्वरूप माना जाता है और नदी के रूप में माता की पूजा अर्धना की जाती है।
  • एक पौराणिक मान्यता के अनुसार भगवान विष्णु ने गंडकी नदी के पास ही भगवान शिव की तपस्या की थी, तब शिव जी ने प्रसन्न होकर विष्णु जी को सुदर्शन चक्र प्रदान किया था।
  • गंडकी चंडी शक्तिपीठ (Gandaki Chandi Shakti Peeth) की मुख्य देवी की पूजा के लिए लाल फुल, हल्दी, कुमकुम, और अन्य पूजन सामग्री का उपयोग किया जाता है।
  • गंडकी चंडी शक्तिपीठ (Gandaki Chandi Shakti Peeth) की देवी के दर्शन करने से, घर के भुत पिशाच दूर रहते हैं, और यह देवी अपने भक्तों की हमेशा सुरक्षा करती हैं।
  • गंडकी चंडी शक्तिपीठ (Gandaki Chandi Shakti Peeth) में नवरात्री के दिनों में यात्रा करना शुभ माना जाता है, इस समय माता के दर्शन करने वालों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है।
  • गंडकी चंडी शक्तिपीठ (Gandaki Chandi Shakti Peeth) के पास मौजूद नदी में शालिग्राम नाम का पत्थर पाया जाता है, एक मान्यता के अनुसार भगवान विष्णु इन्ही शालिग्राम पत्थरों में बसते हैं।
  • गंडकी नदी में पाए जाने वाले शालिग्राम के पत्थरों से ही भगवान रामलला की मूर्ति को स्थापित की गई है, जोकि भगवान विष्णु का अन्य स्वरूप हैं।
  • गंडकी नदी में स्नान करने वाले हर भक्तों को मोक्ष की प्राप्ति होती है, इसके साथ लोगों के शरीर और मन पूर्ण रूप से शुद्ध हो जाता है।
  • गंडकी चंडी शक्तिपीठ (Gandaki Chandi Shakti Peeth) की गंडकी देवी को काली गंडकी के रूप में भी जाना जाता है।
  • गंडकी चंडी शक्तिपीठ (Gandaki Chandi Shakti Peeth) के पास भगवान शिव और माता सती निवास करती हैं, यहाँ पर शिव जी को चक्रपाणि और माता सती को गंडकी के रूप में जाना जाता है।

गंडकी चंडी शक्तिपीठ की महत्वपूर्ण जानकारी

मंदिर का नामगंडकी चंडी शक्ति पीठ / मुक्तिनाथ मंदिर
जगह का नामनेपाल
प्रमुख देवतागंडकी देवी
मंदिर की भाषाहिंदी, नेपाली, इंगलिश
मंदिर की प्राचीन प्रमुखतायहाँ पर माता सती का दायाँ गाल गिरा था।
प्रमुख त्यौहारनवरात्री
मंदिर निर्माण शैलीपगोडा
मंदिर खुलने का समयसुबह 4 बजे

गंडकी चंडी शक्तिपीठ से जुडी है मगर और गज की युद्ध कथा

सामान्य रूप से गंडकी चंडी शक्तिपीठ (Gandaki Chandi Shakti Peeth) से अनेकों किंवदंतियाँ जुडी हैं उन्ही में से एक हैं एक हाथी और मगरमच्छ की प्राचीन कथा। इस कथा के अनुसार एक राज्य में इन्द्रदमन राजा रहता था, जोकि भगवान विष्णु का भक्त था। राजा ने अपना राज पाठ त्यागकर भगवान की भक्ति आराधना करना चाहा। इसके साथ ही वह संसार की हर मोह माया से दूर हो गया। राजा कही दूर जाकर भगवान विष्णु के ध्यान में लीन हो गया। कई महीने और साल बीत गए राजा ध्यान में ही लीन रहा। एक बार एक ऋषि अपने शिष्यों के साथ उसी पथ से जा रहे थे जहाँ पर इन्द्रदमन भगवान विष्णु के ध्यान में लीन थे। जब ऋषि ने राजा को तपस्या करते देखा तो वह उनके पास गए और उन्हें जागृत होने का आग्रह किया। लेकिन राजा ने उनकी बात को अनसुना कर दिया और ध्यान से जागृत नहीं हुए।

राजा का ऐसा घमंड देखकर ऋषि ने राजा को श्राप दे दिया कि वह हमेशा के लिए हाथी के रूप में परिवर्तित हो जाएंगे, परिणामस्वरूप राजा एक हाथी के स्वरूप में जंगल में रहने लगे। एक बार जब इस हाथी को प्यास लगी तो यह पानी की तलाश में हर जगह भटकने लगा, आखिर में जाकर वह एक नदी के पास पहुंचा जहा पर विशाल नदी बह रही थी। नदी के अन्दर जाकर हाथी ने अपनी प्यास बुझा ली, लेकिन तभी अचानक से नदी में मगरमच्छ आ जाता है और उस हाथी के एक पैर को अपने जबड़ों में दबा लेता है। हाथी यह देख मगरमच्छ प्रहार कर देता है, और दोनों जानवरों के बिच घमासान युद्ध होता है। यह युद्ध कई सालों तक चलता है जिसमे मगरमच्छ को कुछ भी नहीं होता, परन्तु हाथी की दशा दयनीय हो चुकी थी, इस अवस्था में राजा रूपी हाथी ने भगवान विष्णु जी का स्मरण किया, तब विष्णु जी नदी के पास ही प्रकट हो जाते हैं और अपने भक्त का यह हाल देखकर, चिंतित हो उठते हैं। अपनी भक्त की रक्षा हेतु भगवान अपने सुदर्शन चक्र से मगरमच्छ का सिर धड़ से अलग कर देते हैं और हाथी नदी से बाहर आ जाता है। इस तरह से भगवान विष्णु अपनी भक्त की रक्षा करते हैं।

जिस नदी में यह युद्ध हुआ था उसे गंडकी नदी अथार्त गंडकी शक्ति पीठ का स्वरूप माना जाता है।

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गंडकी चंडी शक्तिपीठ के पास ही भगवान विष्णु श्रापित हुए थे

गंडकी चंडी शक्तिपीठ (Gandaki Chandi Shakti Peeth) के साथ भगवान विष्णु का एक अनोखी कथा प्रचलित है जिसके अनुसार, शंखचूड़ नामक राक्षस की पत्नी वृंदा भगवान विष्णु की सबसे प्रिय भक्त थी। वृंदा भगवान विष्णु को अत्यधिक स्नेह करते थे इसलिए वह उन्हें अपने हृदय में धारण करना चाहती थी। परंतु भगवान विष्णु के लिए माता लक्ष्मी ही उनकी अर्धांगिनी थी। भगवान विष्णु माता लक्ष्मी के सिवा अन्य किसी को पत्नी के रूप में स्वीकार नहीं कर सकते थे। यह बात वृंदा को अत्यधिक दुखी कर गई, क्यूंकि वह सच्चे मन से भगवान को अपना सबकुछ मान चुकी थी और भगवान ने उसे अपने जीवन में वह स्थान नहीं दिया जैसा वह चाहती थी, इस विरह में व्याकुल होकर वृंदा ने भगवान विष्णु को श्राप दे दिया कि वह शिलाग्राम रूपी पत्थर में परवर्तित हो जाएंगे, और कीटों द्वारा उनको कुतरा जाएगा।

भगवान विष्णु ने वृंदा के स्नेह और भक्ति का आदर करते हुए, उनके श्राप को स्वीकार कर लिया और वह गंडकी शक्ति पीठ के पास ही शालिग्राम नामक रूप पत्थर में परिवर्तित हो गए।

गंडकी चंडी शक्तिपीठ से जुडी है शालिग्राम पत्थर की महत्वता

पुराणिक मान्यता के अनुसार शालिग्राम पत्थर को विष्णु जी का स्वरूप माना जाता है जोकि गंडकी चंडी शक्तिपीठ (Gandaki Chandi Shakti Peeth) के पास गंडकी नदी में पाया जाता है। नदी में इस शालिग्राम पत्थर का स्वरूप काला है। इस पत्थर की रहस्यमई बात यह कि इन सभी में अलग किस्म की आकृतियाँ पाई जाती हैं जोकि दैविक रूप का विवरण करती हैं। विभिन्न शालिग्रामों में भगवान विष्णु के सुदर्शन चक्र का प्रतिरूप देखा जा सकता है, जोकि इस बात की निशानी है कि पत्थर में भगवान विष्णु का वास है। एक प्रथा के अनुसार देवप्रबोधिनी एकादशी के दिन माता तुलसी और शालिग्राम पत्थर का विवाह संपन्न किया जाता है। इस प्रथा में भाग लेने वाले भक्तों को अपार पुण्य की प्राप्ति होती है।

गंडकी चंडी शक्तिपीठ दर्शन का सही समय | Darshan Timing Of Gandaki Chandi Shakti Peeth

अगर आप गंडकी चंडी शक्ति पीठ के दर्शन करना चाहते हैं तो आपको सही समय का चुनाव करना जरुरी है। मौसम के अनुसार मार्च से मई तक मंदिर के दर्शन किए जा सकते हैं, क्यूंकि जून से यहाँ भारी बारिश चालु हो जाती है जिसकी वजह से चढ़ाई के लिए रास्ते पूरी तरह से जोखिम भरे हो जाते हैं। इसके अलावा सर्दियों में यहाँ पर भारी मात्रा में बर्फ़बारी होती है, जिसकी वजह से मंदिर की यात्रा काफी कठिन हो जाती है, इसलिए बारिश के बाद और सर्दियों से पहले मंदिर के दर्शन किए जा सकते हैं। उपयुक्त समयनुसार सितम्बर और अक्टूबर के महीने में भी मंदिर के दर्शन किए जा सकते हैं।

गंडकी चंडी शक्तिपीठ का यात्रा विवरण | Travling Detail Of Gandaki Chandi Shakti Peeth

गंडकी चंडी शक्ति पीठ के दर्शन के लिए सबसे पहले काठमांडू जाना होता है जोकि नेपाल की राजधानी है। भारतीय लोगों को नेपान में जाने के लिए परमिट बनाना पड़ता है जिसके बाद नेपाल के अन्दर प्रवेश किया जा सकता है। काठमांडू पहुँचने के बाद आपको यहाँ से पोखरा के लिए जाना पड़ता है। पोखरा जाने के लिए आपको सड़कों की अच्छी सुविधा मिल जाएगी। काठमांडू से पोखरा की दुरी लगभग 206 किलोमीटर है, इस दुरी को तय करने में लगभग 6 घंटे का समय लग सकता है। पोखरा से आपको जोमसोम तक जाना होता है यहाँ से आपको 2 घंटे का सफ़र तय करना पड़ता है। इसके बाद मंदिर तक जाने के लिए पैदल यात्रा करनी पड़ती है जोकि लगभग 2 किलोमीटर हैं। इसके अलवा मंदिर से नजदीकी रेलवे स्टेशन गोरखपुर रेलवे स्टेशन हैं, जहाँ से मंदिर की दुरी 412 किलोमीटर हैं, और नजदीकी एअरपोर्ट, पोखरा एअरपोर्ट हैं जहाँ से मंदिर की दुरी लगभग 279 किलोमीटर हैं।

गंडकी चंडी शक्तिपीठ के पास घुमने की जगह | Best Place To Visit Nearest Gandaki Chandi Shakti Peeth

अगर आप गंडकी शक्ति पीठ के दर्शन इच्छुक है तो आपको इसके पास मौजूद प्रशिद्ध स्थलों के पास जरुर जाना चाहिए, क्यूंकि यहाँ की सुन्दरता मनमुग्ध करने वाली है। इसके साथ ही इन प्रसिद्ध स्थलों की अनेकों विशाताएं हैं जिन्हें आप आगे पढ़ सकते हैं।

कंचनजंगा बेस कैंप

अगर आप पहाड़ी छेत्रों में घुमने के शौखिन हैं तब आपको कंचनजंगा अवश्य जान चाहिए। कंचनजंगा एक विशाल पर्वत श्रंखला का स्वरूप हैं। यहाँ का वातावरण इतना ज्यादा शांत है, यहाँ पर मन और आत्मिक शान्ति प्राप्त की जा सकती है। यहाँ से आपको प्राचीन हिमखंडों का अदभुत नजारा देखा जा सकता है।

पाथिभरा देवी मंदिर

गंडकी चंडी शक्ति पीठ के पास ही एक पवित्र स्थल पाथिभरा देवी का मंदिर मौजूद है, जोकि नेपाल में स्थित पवित्र स्थानों में से एक है, यह मंदिर देवी पाथिभरा को समर्पित है। आध्यात्मिक दृष्टिकोण से यह मंदिर प्रमुख दैविक स्थलों में से एक है इसलिए इस मंदिर के दर्शन एक बार जरुर करना चाहिए।

हलेसी महादेव मंदिर

हलेसी महादेव मंदिर एक अन्य धार्मिक स्थल है जहाँ पर भगवान शिव की प्रतिमा को पूजा जाता है। अगर आप गंडकी शक्ति पीठ दर्शन के लिए जाएँ, तब आपको इस मंदिर के दर्शन जरुर करने चाहिए क्यूंकि यह मंदिर गंडकी शक्ति पीठ से बेहद पास में स्थित है।

Mai Beni Revier

यह नेपाल में स्तिथ एक पवित्र नदी है जहाँ पर प्रत्येक वर्ष मेले का आयोजन किया जाता है। यह नदी धार्मिक स्थलों में से एक है। इसलिए यहाँ पर हर साल सैकड़ों श्रधालों की भीड़ एकत्रित होती है।

FAQ

गंडकी शक्ति पीठ (Gandaki Chandi Shakti Peeth) के पास माता सती का कौनसा अंग गिरा था?
दायाँ गाल।

गंडकी शक्ति पीठ (Gandaki Chandi Shakti Peeth) सुबह कितने बजे खुलता है?
प्रातः काल 4 बजे

गंडकी शक्ति पीठ (Gandaki Chandi Shakti Peeth) के प्रमुख पर्व कौनसे हैं?
शिवरात्रि, नवरात्रि, दीपावली।

गंडकी शक्ति पीठ (Gandaki Chandi Shakti Peeth) कितनी ऊंचाई पर स्थित है?
यह शक्ति पीठ 3800 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है।

गंडकी शक्ति पीठ (Gandaki Chandi Shakti Peeth) के प्रमुख देवता कौन हैं?
गंडकी देवी और चक्रपानी शिव ।

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