सोमवार, जुलाई 7, 2025
होमदुर्गा सप्तशतीअथ श्री दुर्गा सप्तशती : सम्तमोऽध्यायः | Durga Saptashati : Seven Chapter

अथ श्री दुर्गा सप्तशती : सम्तमोऽध्यायः | Durga Saptashati : Seven Chapter

इस अध्याय में मुख्य रूप से देवी कात्यायनी के द्वारा शुम्भ-निशुम्भ नामक असुरों के वध का वर्णन किया गया है। यह अध्याय भक्तों को शक्ति, साहस और भक्ति का संदेश देता है।

     
    मैं मातंगीदेवीका ध्यान करता हूँ। वे रत्नमय सिंहसानपर बैठकर पढ़ते हुए तोतेका मधुर शब्द सुन रही हैं। उनके शरीरका वर्ण श्यामहैं। वे अपना एक पैर कमलपर रखे हुए हैं और मस्तकपर अर्धचन्द्र धारण करती हैं तथा कहृार-पुष्पोंकी माला धारण किये वीणा बजाती हैं। उनके अंगमें कसी हुई चोली शोभा पा रही है। वे लाल रंगकी साड़ी पहने हाथमें शंखमय पात्र लिये हुए हैं। उनके वदनपर मधुका हलका-हलका प्रभाव जान पड़ता है और ललाटमें बेंदी शोभा दे रहीं है।
   ऋषि कहते हैं- तदनन्तर शुम्भकी आज्ञा पाकर वे चण्ड-मुण्ड आदि दैत्य चतुरंगिणी सेनाके साथ अस्त्र-शस्त्रोंसे सुसज्जित हो चल दिये। फिर गिरिराज हिमालयके सुवर्णमय ऊँचे शिखरपर पहुँचकर उन्होंने सिंहपर बैठी देवीको देखा। वे मन्द-मन्द मुसकरा रही थीं। उन्हें देखकर दैत्यलोग तत्परतासे पकड़नेका उद्योग करने लगे। किसीने धुनष तान लिया, किसीने तलवार सँभाली और कुछ लोग देवीके पास आकर खड़े हो गये। तब अम्बिकाने उन शत्रुओंके प्रति बड़ा क्रोध किया। उस समय क्रोधके कारण उनका मुख काला पड़ गया।। ललाटमें भौंहें टेढ़ी हो गयी और वहाँसे तुरंत विकरालमुखी काली प्रकट हुईं, जो तलवार और पाशा लिये हुए थीं। वे विचित्र खट्वांग धाारण किये और चीतेके चर्मकी साड़ी पहले नर-मुण्डोंकी मालासे विभूषित थीं। उनके शरीरका मांस सूख गया था, केवल हड्डियोंका ढाँचा था, जिससे वे अत्यन्त भयंकर जान पड़ती थीं। उनका बहुत विशाल था, जीभ लपलपानके कारण वे और भी डरावनी प्रतीत होती थीं। उनकी आँखें भीतरको धँसी हुई और कुछ लाल थीं, वे अपनी भयंकर गर्जनासे सम्पूर्ण दिशाओंको गुँजा रही थीं। बड़े-बड़े दैत्योंका वध करती हुई वे कालिकादेवी बड़े वेगसे दैत्योंकी उस सेनापर टूट पड़ीं और उन सबको भक्षण करने लगीं।।
    वे पार्श्वरक्षकों, अंकुशधारी महावतों, योद्धाओं और घण्टासहित कितने ही हाथियोंको एक ही हाथसे पकड़कर मुँहमे डाल लेती थीं। इसी प्रकार घोड़े, रथ और सारथिके साथ रथी सैनिकोंको मुँहमें डालकर वे उन्हें बड़े भयानक रूपसे चबा डालती थीं। किसीके बाल पकड़ लेतीं, किसीका गला दबा देतीं, किसीको पैरोंसे कुचल डालतीं और किसीको छातीके धक्केसे गिराकर मार डालती थीं।। वे असुरोंके छोडे हुए बड़े-बड़े अस्त्र-शस्त्र मुँहसे पकड़ लेतीं और रोषमें भरकर उनको दाँतोंसे पीस डालती थीं।ं कालीने बलवान् एवं दुरात्मा दैत्योंकी वह सारी सेना रौंद डाली, खा डाली और कितनोंको मार भगाया।। कोई तलवारके घाट उतारे गये, कोई खट्वांगसे पीटे गये और किसने ही असुर दाँतोंके अग्रभागसे कुचले जाकर मृत्युको प्राप्त हुए।। 
इस प्रकार देवीने असुरोंकी उस सारी सेनाको क्षणभरमें मार गिराया। यह देख चण्ड उन अत्यन्त भयानक कालीदेवीकी और दौड़ा तथा महादैत्य मुण्डने भी अत्यन्त भयंकर बाणोंकी वर्षासे तथा हजारों बार चलाये हुए चक्रोंसे उन भयानक नेत्रोंवाली देवीको आच्छादित कर दिया। वे अनेकों चक्रोंसे देवीके मुखमें समाते हुए ऐसे जान पडे़, मानो सूयेके बहुतेरे मण्डल बादलोंके उदरमें प्रवेश कर रहे हों।। तब भयंकर गर्जना करनेवाली कालीने अत्यन्त रोषमें भरकर विकट अट्टहास किया। उस समय उनके विकराल वदनके भीतर कठिनतासे देखे जा सकनेवाले दाँतोंकी प्रभासे वे अत्यन्त उज्ज्वल दिखायी देती थीं।। देवीने बहुत बड़ी तलवार हाथमें ले ’हं’ का उच्चारण करके चण्डपर धावा किया और उसके केश पकड़कर उसी तलवारसे उसका मस्तक काट डाला।।
चण्डको मारा गया देखकर मुण्ड भी देवीकी ओर दौड़ा तब देवीने रोषमें भरकर उसे भी तलवारसे घायल करके धरतीपर सुला दिया।ं महापराक्रमी चण्ड और मुण्डको मारा गया देख मरनेसे बची हुई बाकी सेना भयसे व्याकुल हो चारो ओर भाग गयी।। मदनन्तर कालीने चण्ड और मुण्डका मस्तक हाथमें ले चण्डिकाके पास जाकर प्रचण्ड अट्टहास करते हुए कहा- ‘देवि! मैंने चण्ड और मुण्ड नामक इन देा महापशुओंको तुम्हें भेंट किया है। अब युद्धयज्ञमें तुम शुम्भ और निशुम्भका स्वयं ही वध करना।।
   ऋषि कहते हैं- वहाँ लाये हुए उन चण्ड-मुण्ड नामक महादैत्योंको देखकर कल्याणमयी चण्डीने कालीसे मधुर वाणीमें कहा-  देवि! तुम चण्ड और मुण्डको लेकर मेरे मास आयी हो, इसलिये संसारमें चामुण्डाके नामसे तुम्हारी ख्याति होगी’।।
 इस प्रकार श्रीमार्कण्डेयपुराणमें सावर्णिक मन्वन्तरकी कथाके अन्तर्गत देवीमाहात्म्यमें ‘चण्ड-मुण्ड-वध’ नामक सातवाँ अध्याय पूरा हुआ।।

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