सोमवार, जुलाई 7, 2025
होमदुर्गा सप्तशतीअथ श्री दुर्गा सप्तशती :एकादशोऽयाय | Durga Saptashati : Eleven Chapter

अथ श्री दुर्गा सप्तशती :एकादशोऽयाय | Durga Saptashati : Eleven Chapter

इस अध्याय में देवताओं द्वारा देवी की महिमा का गुणगान किया गया है। वे देवी को “चामुण्डा,” “महामाया,” और “भूतार्तिहारिणी” कहकर स्तुति करते हैं।


मैं भुवनेश्वरीदेवीका ध्यान करता हूँ। उनके श्रीअंगोंकी आभा प्रभातकालके सूर्यके समान है और मस्तकपर चन्द्रमाका मुकुट हैं। वे उभरे हुए स्तनों और तीन नेत्रोंसे युक्त हैं। उनके मुखपर मुसकानकी छटा छायी रहती है और हाथोंमें वरद, अंकुश, पाश एवं अभय-मुद्रा शोभा पाते हैं।

ऋषि कहते हैं- देवीके द्वारा वहाँ महादैत्यपति शुम्भके मारे जानेपर इन्द्र आदि देवता अग्निको आगे करके उन कात्यायनीदेवीकी स्तुति करने लगे। उस समय अभीष्टकी प्राप्ति होनेसे उनके मुखकमल दमक उठे थे और उनके प्रकाशसे दिशाएँ भी जगमगा उठीं थीं।।

देवता बोले- शरणागतकी पीड़ा दूर करनेवाली देवि! हमपर प्रसन्न होओ। सम्पूर्ण जगत्की माता! प्रसन्न होओ। विश्वेश्वरि! विश्वकी रक्षा करो। देवि! तुम्हीं चराचर जगत्की अधीश्वरी हो।। तुम इस जगत्का एकमात्र आधार हो; क्योंकि पृथ्वीरूपमें तुम्हारी ही स्थिति है। देवि! तुम्हारा प्रराक्रम अलंघनीय है। तुम्हीं जलरूपमें स्थित होकर सम्पूर्ण जगत्को तृप्त करती हो तुम अनन्त बलसम्पन्न वैष्णवी शक्ति हो। इस विश्वकी कारणभूता परा माया हो। देवि! तुमने इस समस्त जगत्को मोहित कर रखा है। तुम्हीं प्रसन्न होनेपर इस पृथ्वीपर मोक्षकी प्राप्ति कराती हो।। देवि! सम्पूर्ण विद्याएँ तुम्हारे ही भिन्न-भिन्न स्वरूप् हैं। जितनी स्त्रियाँ हैं, वे सब तुम्हारी ही मूर्तियाँ हैं। जगदम्ब! एकमात्र तुमने ही इस विश्वको व्याप्त कर रखा है। तुम्हारी स्तुति क्या हो तुम तो स्तवन करनेयोग्य पदार्थोंसे परे एवं पर वाणी हो।। जब तुम सर्वस्वरूपा देवी स्वर्ग तथा मोक्ष प्रदान करनेवाली हो, तुम इसी रूपमें तुम्हारी स्तुति हो गयी। तुम्हारी स्तुतिके लिये इससे अच्छी उक्तियाँ और क्या हो सकती हैं?।। बुद्धिरूपसे सब लोगोंके हृदयमें विराजमान रहनेवाली तथा स्वर्ग एवं मोक्ष प्रदान करनेवाली नारायणी देवि! तुम्हें नमस्कार है।। कला, काष्ठा अदिके रूपसे क्रमशः परिणाम (अवस्था-परिवर्तन)- की ओर ले जानेवाली तथा विश्वका उपसंहरा करनेमें समर्थ नारायणि। ! तुम्हें नमस्कार है।। नारायणि तुम सब प्रकारका मंगल प्रदान करनेवाली मंगलमयी हो। कल्याणदायिणी शिवा हो। सब पुरुषार्थोंको सिद्ध करनेवाली, शरणगतवत्सला, तीन नेत्रोंवाली एवं गौरी हो। तुम्हें नमस्कार है।। तुम सृष्टि, पालन और संहराकी शक्तिभूता, सनातनी देवी, गुणोंका आधार तथा सर्वगुणमयी हो। नारायणि! तुम्हें नमस्कार है।।
सर्वस्वरूपा, सर्वेश्वरी तथा सब प्रकारकी शक्तियोंसे सम्पन्न दिव्यरूपा दुर्गे देवि! सब भयोंसे हमारी रक्षा करो; तुम्हें नमस्कार है।। कात्यायनि! यह तीन लोचनोेसे विभूषित तुम्हारा सौम्य मुख प्रकारके भयोंसे हमारी रक्षा करे। तुम्हें नमस्कार है।। भद्रकाली! ज्वालाओंके कारण विकराल प्रतीत होनेवाला, अत्यन्त भयंकर और असुरोंका संहार करनेवाला तुम्हारा त्रिशूल भयसे हमें बचायें। तुम्हें नमस्कार है।। देवी जो अपनी ध्वनिसे सम्पूर्ण जगत्को व्याप्त करके दैत्योंके तेज नष्ट किये देता है, वह तुम्हारा घण्टा हमलोगोंकी पापोंसे उसी प्रकार रक्षा करें, जैसे माता अपने पुत्रोंकी बुरे कर्मोंसे रक्षा करती है। चण्डिके! तुम्हारे सुशोभित खड्ग, जो असुरोंके रक्त और चर्बीसे चर्चित है, हमारा मंगल करे। हम तुम्हें नमस्कार करते है।।
देवि! तुम प्रसन्न होनेपर सब रोगोंको नष्ट कर देती हो और कुपित होनेपर मनोवांछित सभी कामनाओंका नाश कर देती हो। जो लोग तुम्हारी शरणमें जा चुके हैं, उनपर विपत्ति तो आती ही नहीं। तुम्हारी शरणमें गये हुए मनुष्य देसरोंको शरण देनेवाले हो जाते है। देवि! अम्बिके!! तुम्ने अपने स्वरूपको अनेक भागोंमें विभक्त करके नाना ्रपकार के रूपोंसे जो इस समय इन धर्मद्रोही महादैत्योंका संहार किया है, वह सब दूसरी कौन कर सकती थी?।। विद्याओंमें, ज्ञानको प्रकाशित करनेवाले शास्त्रोंमें तथा आदिवाक्यों (वेदों)- में तुम्हारे सिवा और किसका वर्णन है? तथा तुमको छोड़कर दूसरी कौन ऐसी शक्ति है, जो इस विश्वको अज्ञानमय घोर अन्धकारसे परिपूर्ण ममतारूपी गढ़ेमें निरन्तर भटका रही हो।।
जहाँ राक्षस, जहाँ भयंकर विषवाले सर्प, जहाँ शत्रु, जहाँ लुटेरोंकी सेना और जहाँ दावानल हो, वहाँ तथा समुद्रके बीचमें भी साथ रहकर तुम विश्वकी रक्षा करती हो।। विश्वेश्वरि! तुम विश्वका पालन करती हो ! विश्वरूपा हो, इसलिये सम्पूर्ण विश्वाकों धारण करती हो। तुम भगवान् विश्वनाथकी भी वन्दनीया हो। जो लोग भक्तिपूर्वक तुम्हारे सामने मस्तक झुकाते हैं, वे सम्पूण विश्वको आश्रय देनेवाले होते है।। देवि! प्रसन्न होओ। जैसे इस समय असुरोंका वध करके तुमनें शीघ्र ही हमारी रक्षा की है, उसी प्रकार सदा हमें शत्रुओंके भयसे बचाओं। सम्पूर्ण जगत्का पाप नष्ट कर दो और उत्पात एवं पापोंके फलस्वरूप् प्राप्त होनेवाले महामारी आदि बड़े-बड़े उपद्रवोंको शीघ्र दूर करो।।
विश्वकी पीड़ा दूर करनेवाली देवि! हम तुम्हारे चरणोंपर पड़े हुए हैं, हमपर प्रसन्न होओ। त्रिलोकनिवासियोंकी पूजनीया परमेश्वरि! सब लोगोंको वरदान दो।।

देवि बोलीं-
देवताओ! मैं वर देनेको तैयार हुँ। तुम्हारे मनमें जिसकी इन्छा हो, वह पर माँगा लो। संसारके लिये उस उपकारक वरको मैं अवश्व दूँगी।।

देवता बोले- सर्वेश्वरि! तुम इसी प्रकार तीनों लोकोंकी समस्त बाधाओंको शान्त करो और हमारे शत्रुओंका नाश करती रहों।।

देवी बोलीं- देवताओ! वैवस्वत मन्वन्तके अट्ठाईसवें युगमें शुम्भ और निशुम्भ नामके दो अन्य महादैत्य उत्पन होंगे।। तब मैं नन्दगोपके घरमें उनकी पत्नी यशोदाके गर्भसे अवतीर्ण हो विन्ध्याचलमें जाकर रहूँगी और उक्त दोनों असुरोंका नाश करूँगी।। फिर अन्यन्त भयंकर रूपसे पृथ्वीपर अवतार ले मैं वैप्रचित्त नामवाले दानवोंका वध करूँगी।। उन भयंकर महादैत्योंको भक्षण करते समय मेरे दाँत अनारके भाँति लाल हो जायँगे।। तब स्वर्गमें देवता और मर्त्यलोकमें मनुष्य सदा मेरी स्तुति करते हुए मुझे ‘रक्तदन्तिका’ कहेंगे।। फिर जब पृथ्वीपर सौ वर्षोंके लिये वर्षा रुक जायगी और पानीका अभाव हो जायगा, उस समय मुनियोंके स्तवन करनेपर मैं पृथ्वीपर अयोनिजारूपमें प्रकट होऊँगी।। और सौ नेत्रोंसे मुनियोंको देखूँगी। अतः मनुष्य ‘शताक्षी’ इस नामसे मेरा कीर्तन करेंगे।। देवताओं! उस समय मैं अपने शरीसे उत्पन्न हुए शाकोंद्वारा समस्त संसारका भरण-पोषण करूँगी। जबतक वर्षा नहीं होगी, तबतक वे शाक ही सबके प्राणेंकी रखा करेंगे।।
ऐसा करनेके कारण पृथ्वीपर ‘शाकम्भरी’ के नामसे मेरी ख्याति होगी। उसी अवतारमें मैं दुर्गम नामक महादैत्यका वध भी करूँगी।। इससे मेरा नाम ‘दुर्गादेवी’ के रूपसे प्रसिद्ध होगा।। फिर मैं जब भीमरूप धारण करके मुनियोंकी रक्षाके लिये हिमालयपर रहनेवाले राक्षसोंका भक्षण करूँगी, उस समय सब मुनि भक्तिसे नतमस्तक होकर मेरी स्तुति करेंगे।। तब मेरा नाम ‘भीमादेवी’ के रूपमें विख्यात होगा।। जब अरुण नामक दैत्य तीनों लोकोंमें भारी उपद्रव मचायेगा।। तब मैं तीनों लोकोंका हित करनेके लिये छः असंख्य भ्रमरोंका रूप धारण करके उस महादैत्यका वध करूँगी।। उस समय सब लोग ‘भ्रामरी’ के नामसे चारों ओर मेरी स्तुति करेंगे। इस प्रकार जब-जब संसारमें दानवी बाधा उपस्थित होगी, तब-तब अवतार लेकर मैं शत्रुओंका संहार करूँगी।।

इस प्रकार श्रीमर्कण्डेयपुराणमें सावर्णिक मन्वन्तरकी कथाके अनतर्गत देवीमाहात्म्यमें ‘देवीस्तुति’ नामक ग्यारहवाँ अध्याय पूरा हुआ।।

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