बुधवार, जून 18, 2025
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भद्रकाली शक्तिपीठ (Bhadrakali Shakti Peeth) से जुड़ी अनूठी प्रथा, इतिहास, रहस्य और अन्य महत्वपूर्ण जानकारियां

51 शक्तिपीठों के निर्माण की कथा से तो आप सभी वाकिफ हैं। इन्हीं शक्तिपीठों में से एक है भद्रकाली शक्तिपीठ (Bhadrakali Shakti Peeth) जो कि हरियाणा के कुरुक्षेत्र में स्थित है। इसे श्रीदेवी कूप भद्रकाली मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। कहा जाता है कि इस स्थान पर माता सती के दाएं पैर का टखना यानी कि घुटने के नीचे का हिस्सा गिरा था, बाद में यहां भद्रकाली शक्तिपीठ का निर्माण हुआ। यह शक्तिपीठ माता काली के आठ रूपों में से एक माना गया है।

भद्रकाली शक्तिपीठ (Bhadrakali Shakti Peeth) की सबसे अनोखी बात है यहां पर घोड़े दान किए जाने की प्रथा। इसके अलावा इस शक्तिपीठ से श्री कृष्ण भी रोचक रूप से जुड़े हैं। क्या आप जानना चाहते हैं इस अनूठी प्रथा और श्री कृष्ण से जुड़े तथ्य के बारे में। इन दोनों ही तथ्यों के बारे में हम आपको आगे इस आर्टिकल में बताएंगे। हमारे आज के इस आलेख में हम इस शक्तिपीठ से जुड़े सभी रहस्यों, इससे जुड़ी पौराणिक कथा और इससे जुड़ी सभी महत्वपूर्ण बातों के बारे में चर्चा करेंगे। तो आप इस आलेख से अंत तक जुड़े रहे।

Table of Contents

भद्रकाली शक्तिपीठ का इतिहास | Bhadrakali Shakti peeth History In Hindi

भद्रकाली शक्तिपीठ (Bhadrakali Shakti Peeth) के इतिहास की बात करें तो कहा जाता है कि जब भगवान विष्णु ने माता सती के मृत शरीर के 51 टुकड़े किए तो उनके दाहिने पैर का टखना यहां स्थित एक कुएं जिसे ब्रह्म पुराण में देवी कूप कहा गया है, में गिर गया। इसी कारण भद्रकाली शक्तिपीठ को श्रीदेवी कूप भद्रकाली मंदिर भी कहते हैं। वामन पुराण तथा ब्रह्म पुराण के अनुसार कुरुक्षेत्र में चार कूपों अर्थात कुँओं के स्थित होने का वर्णन मिलता है जिनके नाम इस प्रकार हैं- चन्द्र कूप, विष्णु कूप, रुद्र कूप और देवी कूप। माता काली के निवास के कारण इस शक्तिपीठ को सावत्री पीठ भी कहा जाता है।

पुराणों में वर्णित तथ्यों के अनुसार भद्रकाली शक्तिपीठ में भगवान श्री कृष्ण और उनके बड़े भाई बलराम का मुंडन संस्कार किया गया था। कहा जाता है कि महाभारत के युद्ध से पहले भगवान श्री कृष्ण ने पांडवों को माता महाकाली से विजयश्री का आशीर्वाद पाने के लिए भद्रकाली शक्तिपीठ में उपासना करने के लिए भेजा था। तब अर्जुन ने यहां साधना की और माता काली से युध्द में विजय का आशीर्वाद प्राप्त किया था।

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भद्रकाली शक्तिपीठ की संरचना | Bhadrakali Shakti peeth Architecture

भद्रकाली शक्तिपीठ (Bhadrakali Shakti Peeth) मंदिर में मां काली की प्रतिमा शांत मुद्रा में स्थापित है। मंदिर के प्रवेश करते ही एक बड़ा सा कमल का फूल बनाया गया है। इस कमल के फूल पर मां सती के दाएं पैर का टखना स्थापित किया गया है जो कि सफेद संगमरमर से निर्मित है।

मंदिर के बाहर एक तालाब है जिसे देवी तालाब या द्वैपायन सरोवर कहा जाता है। तालाब के एक छोर पर तक्षकेश्वर महादेव का मंदिर स्थापित है। जिसमें प्राकृतिक रूप से ललाट, तिलक व सर्प बने हुए हैं। शक्तिपीठ में गणों के रूप में दक्षिण मुखी हनुमान, गणेश तथा भैरव को स्थापित किया गया है।

भद्रकाली शक्तिपीठ मंदिर के आसपास कई सरोवर और मंदिर हैं जिनमें से प्रमुख हैं ब्रह्म सरोवर, ज्योतिसर सरोवर, भीष्मा कुंड, स्थानेश्वर महादेव मंदिर, बाणगंगा, सन्निहित सरोवर इत्यादि।

भद्रकाली का शाब्दिक अर्थ है अच्छी या शांत काली। भद्रकाली को यहां दुर्गा की पुत्री के रूप में मान्यता प्राप्त है। पुराणों में वर्णन है कि रक्तबीज के साथ युद्ध के दौरान भद्रकाली ने मां दुर्गा की सहायता की थी। माता भद्रकाली देवी दुर्गा का अवतार हैं और भी महादेव शिव के गण वीरभद्र की पत्नी मानी गई है। वीरभद्र भगवान शंकर का वह गण है जिसे भगवान ने सभी शक्तिपीठों की पहरेदारी करने के लिए उत्पन्न किया था

भद्रकाली शक्तिपीठ (Bhadrakali Shakti Peeth) की महत्वपूर्ण जानकारियां

मंदिर का नामभद्रकाली शक्तिपीठ (Bhadrakali Shakti Peeth)
मंदिर के प्रमुख देवतामां काली
मंदिर का स्थानकुरुक्षेत्र हरियाणा
मंदिर की प्रमुखतायहां माता सती के दाएं पैर का टखना गिरा था
मंदिर के अन्य नामश्रीदेवी कूप भद्रकाली शक्तिपीठ, मां सावित्री शक्तिपीठ
मंदिर की भाषाहिंदी अंग्रेजी
मंदिर का निर्माण काल1000 वर्ष पहले
मंदिर खुलने का समयप्रातः 5:15

भद्रकाली शक्तिपीठ के रहस्य | Bhadrakali Shakti Peeth Facts in Hindi

भारत देश में मंदिरों और रहस्यों का नाता बहुत पुराना रहा है। 51 शक्तिपीठों की बात करें तो हर शक्ति पीठ का कोई ना कोई गहरा रहस्य अवश्य रहा है। इसी तरह भद्रकाली शक्तिपीठ (Bhadrakali Shakti Peeth) भी अपने रहस्यों को लेकर काफी विख्यात है। इस मंदिर से जुड़े रहस्य के बारे में हम आपको बताने जा रहे हैं, जो इस प्रकार हैं

  • माँ भद्रकाली शक्तिपीठ में मन्नत पूरी होने पर सोने, चांदी और मिट्टी के घोड़े चढ़ाए जाने की प्रथा है।
  • वामन पुराण के अनुसार कुरुक्षेत्र में चार कूप चंद्रकूप, विष्णु कूप, रूद्र कूप व देवी कूप दर्शाए गए हैं।
  • माता सती के दाहिने पैर का टखना देवीकूप में गिरने के कारण इसी श्रीदेवी कूप भद्रकाली शक्तिपीठ भी कहा जाता है!
  • माता भद्रकाली शक्तिपीठ की अधिष्ठात्री देवी काली को यहां मां दुर्गा की बेटी के रूप में पूजा जाता है।
  • माता भद्रकाली को भगवान शिव के गण वीरभद्र की पत्नी के रूप में भी पूजा जाता है
  • कहा जाता है कि श्री कृष्ण और उनके भाई बलराम का मुंडन संस्कार भद्रकाली शक्तिपीठ में ही संपन्न किया गया था।
  • भद्रकाली शक्तिपीठ महाभारत काल से प्रासंगिक है। कहा जाता है कि महाभारत के युद्ध से पहले श्री कृष्ण और पांडव इस मंदिर में आशीर्वाद लेने आए थे।
  • महाभारत के युद्ध में जीत के बाद पांडवों ने भद्रकाली शक्तिपीठ में घोड़े दान किए थे तभी से यहां पर घोड़े दान किए जाने का रिवाज है।
  • भद्रकाली के पंचामृत अभिषेक में पानी, दूध, शहद, घी और चीनी का उपयोग किया जाता है। सोलह श्रृंगार के बाद चंदन पूजा और बिल्व पूजा की जाती है।
  • रक्षाबंधन के दिन मां भद्रकाली शक्तिपीठ में भक्तों द्वारा माता को रक्षा सूत्र अर्पित किया जाता है और उनसे सुरक्षा की कामना की जाती है।

भद्रकाली शक्तिपीठ की पौराणिक कहानी | Bhadrakali Shakti peeth Story in Hindi

51 शक्तिपीठों से जुड़ी कई कहानियां हम अक्सर पढ़ते आए हैं। इस आर्टिकल की शुरुआत में हमने माता भद्रकाली शक्तिपीठ (Bhadrakali Shakti Peeth) से जुड़ी घोड़े दान किए जाने की अनूठी प्रथा के बारे में बताया था। भद्रकाली शक्तिपीठ में इस प्रथा की शुरुआत किस तरह हुई इसके पीछे एक रोचक कहानी है। आइये कहानी के बारे में जानते हैं जो इस प्रकार है –

बात महाभारत काल की है जब पांडव और कौरवों के बीच महाभारत का भीषण युद्ध शुरू होने ही वाला था। तब एक दिन श्री कृष्ण ने पांडवों को यह सलाह दी कि उन्हें श्री भद्रकाली शक्तिपीठ में जाकर मां काली की आराधना करनी चाहिए। ऐसा करने से उन्हें निश्चित ही जीत प्राप्त होगी।

तब अर्जुन ने श्री कृष्ण की बात मानते हुए भद्रकाली शक्तिपीठ मंदिर में जाकर महाकाली की घोर उपासना की और कहा कि, ” महादेवी मैंने सच्चे मन से आपकी आराधना की है। अतः आप मुझे आशीर्वाद दें कि इस युद्ध में मेरी विजय हो। मैं यह वचन देता हूं कि युद्ध में विजय के उपरांत मैं यहां पर अश्व दान करने आऊंगा।”

इसके पश्चात महाभारत का भीषण युद्ध 18 दिन तक चला जिसमें पांडवों की विजय हुई। युद्ध जीतने के बाद श्री कृष्ण समेत समस्त पांडवों ने मां भद्रकाली शक्तिपीठ में आकर श्रेष्ठ घोड़े माता की सेवा में दान किये।

तभी से यह अनूठी परंपरा आज तक चली आ रही है। जो भी भक्तगण यहां आकर मन्नत मांगता है उसकी मन्नत पूर्ण होती है और उसके बाद वह यहां पर घोड़े का दान करता है। हालांकि समय परिवर्तन के अनुसार अब यहां पर वास्तविक घोड़े दान नहीं किए जाते बल्कि प्रतीक स्वरूप सोने, चांदी या फिर मिट्टी से बने घोड़े भक्तों द्वारा मां भद्रकाली को अर्पित किए जाते हैं।

भद्रकाली शक्तिपीठ में भारत के राष्ट्रपति और कई मशहूर हस्तियां भी जाकर मन्नत मांग चुकी है और मन्नत पूरी होने पर घोड़े दान कर चुके हैं।

भद्रकाली शक्तिपीठ से जुड़े त्यौहार | Bhadrakali Shakti Peeth Related Festivals in Hindi

त्योहार वह विशेष दिन होते हैं जब किसी मंदिर में आराध्या कहां विशेष पूजन और दर्शन करना शुभ फल प्रदान करने वाला होता है। मंदिर में किसी खास तिथि या नक्षत्र में इस तरह के त्योहार मनाए जाते हैं। इसी तरह भद्रकाली शक्तिपीठ मंदिर में मुख्यतः दो त्यौहार मनाए जाते हैं, जिनके के बारे में हम आपको बताने जा रहे हैं।

नवरात्रि

भद्रकाली शक्तिपीठ का सबसे महत्वपूर्ण त्यौहार है नवरात्रि। चैत्र व अश्विन मास के नवरात्रों में यहां भारी संख्या में भक्त उपस्थित होकर माता का दर्शन करते हैं और मन्नते मांगते हैं। नवरात्रि के दिनों में इस मंदिर को तरह-तरह के विदेशी फूलों और विभिन्न फलों के द्वारा सजाया जाता है। साथ मंदिर में सुंदर सजावट और रोशनी की जाती है

रक्षाबंधन

रक्षाबंधन के त्योहार पर भक्ति जन भद्रकाली शक्तिपीठ की अधिष्ठात्री देवी मां काली को रक्षा सूत्र बाँधते हैं और अपनी रक्षा का भार उन पर सौंपते हैं। ऐसी मान्यता है कि इससे माता उनकी सुरक्षा करती हैं।

भद्रकाली शक्तिपीठ कैसे पहुंचे | How to Reach Bhadrakali Shakti Peeth

अगर आप भद्रकाली शक्तिपीठ मंदिर की यात्रा करने का मन बना रहे हैं तो आपके लिए जानना जरूरी है कि साल के किन दिनों में मंदिर की यात्रा करना अनुकूल होगा। भद्रकाली शक्तिपीठ में यात्रा करने का सबसे अच्छा समय सितंबर से मार्च के बीच होता है। इस समय देश में सर्दियों का मौसम होता है और कुरुक्षेत्र का मौसम ठंडा और सुहावना होता है। गर्मियों में भद्रकाली मंदिर के दर्शन करने की योजना बनाना अनुपयुक्त है क्योंकि इस समय कुरुक्षेत्र में गर्मी प्रचंड रूप में होती है। आगे हम इस आर्टिकल में आपको बता रहे हैं कि आप किस तरह श्री भद्रकाली शक्तिपीठ के दर्शन के लिए यात्रा कर सकते हैं –

सड़क मार्ग से श्री भद्रकाली शक्तिपीठ किस तरह पहुंचे

यदि आप सड़क मार्ग से भद्रकाली शक्तिपीठ की यात्रा करना चाहते हैं तो या तो आप निजी वाहन से यात्रा कर सकते हैं अन्यथा भद्रकाली शक्तिपीठ की यात्रा के लिए बस या टैक्सी सर्विसेज भी उपलब्ध है जिनसे आसानी से मंदिर तक पहुंच सकते हैं। सड़क मार्ग से यात्रा करने के लिए आपको पहले दिल्ली पहुंचना होगा। दिल्ली से श्री भद्रकाली शक्तिपीठ की दूरी 160 किलोमीटर है जिसे आप बस या टैक्सी की मदद से आसानी से तय कर सकते हैं।

रेल मार्ग से श्री भद्रकाली शक्तिपीठ किस तरह पहुंचे

भद्रकाली शक्तिपीठ के दर्शन के लिए रेल यात्रा भी एक अच्छा विकल्प हो सकता है। यदि आप यात्रा के लिए रेलमार्ग का विकल्प चुन रहे हैं तो आपको कुरुक्षेत्र स्टेशन पहुंचना होगा। कुरुक्षेत्र रेलवे स्टेशन से मंदिर की दूरी 2 से 3 किलोमीटर है जिसे आप या तो पैदल तय कर सकते हैं अथवा टैक्सी या ऑटो के द्वारा मंदिर तक पहुंच सकते हैं।

हवाई मार्ग से श्री भद्रकाली शक्तिपीठ किस तरह पहुंचे

यदि आपने मंदिर के दर्शन के लिए हवाई मार्ग चुना है तो आपको फ्लाइट द्वारा इंदिरा गांधी अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर पहुंचना होगा। यहां से मंदिर की दूरी 160 किलोमीटर है। एयरपोर्ट से आप मंदिर पहुंचने के लिए बस या टैक्सी की मदद ले सकते हैं।

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भद्रकाली शक्तिपीठ में दर्शन व आरती का समय | Timing of worship in Bhadrakali Shakti Peeth

श्री भद्रकाली शक्तिपीठ (Bhadrakali Shakti Peeth) मंदिर में आम दिनों में पूजन व दर्शन के लिए कोई तय समय नहीं है। परंतु सर्दी में गर्मी के मौसम में पूजा पाठ व दर्शन के लिए अलग-अलग समय मंदिर प्रशासन द्वारा निर्धारित किया जाता है। जो इस प्रकार है –

गर्मी में मंदिर खुलने का समय

गर्मियों के मौसम में 16 मार्च से लेकर 31 अक्टूबर तक मंदिर सुबह 5:50 खुलता है और रात्रि 8:00 बजे बंद हो जाता है।

सर्दियों में मंदिर खुलने का समय

सर्दियों में 1 नवंबर से लेकर 15 मार्च तक मंदिर सुबह 6:15 पर खुलता है शाम 7:30 बजे बंद हो जाता है। शनिवार तथा विशेष दिनों में मंदिर रात्रि 9:00 बजे तक खुला रहता है।

गौरतलब है कि मंदिर में दिन में दो बार आरतियां की जाती हैं जिनका समय क्रमशः सुबह 5:15 बजे और शाम 7: 15 बजे है।

FAQ : Bhadrakali Shakti Peeth

भद्रकाली के नाम का अर्थ क्या है?
भद्रकाली का शाब्दिक अर्थ है शांत काली या अच्छी काली

भद्रकाली शक्तिपीठ में मां काली किस रूप में विराजमान है?
शांत व सौम्य रूप में

भद्रकाली शक्तिपीठ मंदिर की अनूठी परंपरा क्या है?
भद्रकाली शक्तिपीठ मंदिर में सोने चांदी व मिट्टी के घोड़े दान किए जाते हैं

भद्रकाली शक्तिपीठ मंदिर श्री कृष्ण से किस तरह संबंधित हैं?
श्री कृष्ण और उनके भाई बलराम का मुंडन संस्कार श्री भद्रकाली शक्तिपीठ मंदिर में सम्पन्न हुआ था।

भद्रकाली शक्तिपीठ मंदिर के प्रमुख त्यौहार कौन-कौन से हैं?
चैत्र व अश्विन मास के नवरात्र और रक्षाबंधन

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