ध्यान – जगदम्बा के श्री अंगों की कान्ति उदयकाल के सहस्त्रों सूयोंके समान है। वे लाल रंग की रेशमी साड़ी पहले हुए हैं। उनके गले में मुण्डमाला शोभा पा रही है। दोनों स्तनों पर रक्त चन्दन का लेप लगा है। वे अपने कर-कमलों में जपमालिका, विद्या और अभय तथा व रनामक मुद्राएँ धारण किये हुए है। तीन नेत्रों से सुशोभित मुखारविन्दकी बड़ी शोभा हो रही है। उनके मस्तक पर चन्द्रमा के साथ ही रत्नमय मुकुट बँधा है तथा वे कमल के आसन पर विराजमान हैं। ऐसी देवी को मैं भक्ति पूर्वक प्रणाम करता हुँ।
ऋषि कहते हैं – दैत्यों की सेना को इस प्रकार तहस-नहस होते देख महादैत्य सेना पति चिक्षुर क्रोध में भरकर अम्बिका देवी से युद्ध करने के लिये आगे बढ़ा।। वह असुर रणभूमि में देवी के ऊपर इस प्रकार बाणों की वर्षा करने लगा, जैसे बादल मेरुगिरि के शिखर पर पानी की धार बरसा रहा हो।। तब देवी ने अपने बाणों से उसके बाण समूह को अनायास ही काटकर उसके घोड़ों और सारथि को भी मार डाला।। साथ ही उसके धनुष तथा अत्यन्त ऊँची ध्वजा को भी तत्काल काट गिराया। धनुष कअ जानेपर उसके अंगों को अपने बाणों से बींध डाला।। धनुष, रथ, घोड़े और सारथि के नष्ट हो जाने पर वह असुर ढाल और तलवार लेकर देवी की ओर दौड़ा।। उसने तीखी धारवाली तलवार से सिंह के मस्तक पर चोट करके देवी की भी बायीं भुजा में बड़े वेग से प्रहार किया।। राजनृ! देवीकी बाँह पर पहुँचते ह ी वह तलवार टूट गयी, फिर तो क्रोध से लाल आँखे करके उस राक्षस ने शूल हाथ में लिया।। और उसे उस महादैत्य ने भगवती भद्रकाली के ऊपर चलाया।। वह शूल आकाशसे गिरते हुए सूर्यमण्डल की भाँति अपने तेज से प्रज्वलित हो उठा।।
डस शूलको अपनी ओर आते देख देवीने भी शूलका प्रहार किया।। उससे राक्षसके शूलके सैकड़ कों टुकड़े हो गये, साथ ही महादैत्य चिक्षुर की भी धज्जियाँ उड़ गयीं। वह प्राणोंसे हाथ धो बैठा।।
महिषासुर के सेनापति उस महाराक्रमी चिक्षुरके मारे जानेपर देवताओं को पीड़ा देनेवाला चामर हाथी पर चढ़कर आया।। उसने भी देवी के ऊपर शक्ति का प्रहार किया, किंतु जगदम्बा ने उसे अपने हुंकार से ही आहत एवं निष्प्रभ करके तत्काल पृथ्वी पर गिरा दिया।। शक्ति टूटकर गिरी हुई देख चामर को बड़ा क्रोध हुआ।। अब उसने शूल चलाया, किंतु देवीने उसे भी अपने बाणों द्वारा काट डाला।। इतने में ही देवीका सिंह उछल कर हाथी के मस्तक पर चढ़ बैठा और उस दैत्यके साथ खूब जोर लगाकर बाहु युद्ध करने लगा।। वे दोनों लड़ते-लड़ते हाथीसे पृथ्वी पर आ गये और अत्यन्त क्रोध में भरकर एक-दूसरे पर बड़े भयंकर प्रहार करते हुए लड़ने लगे।
तदनन्तर सिंह बड़े वेग से आकाश की ओर उछला और उधर से गिरते समय उसने पंजों की मार से चामर का सिर धड़ से अलग कर दिया।। इसी प्रकार उदग्र भी शिला और वृक्ष आदिकी मार खाकर रणभूमि में देवकीके हाथ से मारा गया कराल भी दाँतों, मुक्कों और थप्पड़ो की चोटसे धराशायी हो गया।ं क्रोधमें भरी हुई देवी ने गदा की चोट से उद्धत का कचूमर निकाल डाला।। भिन्दिपाल से वाष्कला को तथा बाणों से ताम्र और अन्धक को मौत के घाट उतार दिया।। तीन नेत्रों वाली परमेश्वरी ने त्रिशूल से उग्रास्य, उग्रवीर्य तथा महाहनु नामक दैत्यों को मार डाला।ं तलवार की चोट से विडाल के मस्तक को धड़ से काट गिराया। दुर्धर और दुर्मुख- इन दोनों को भी अपने बाणों से यमलोक भेज दिया।।
इस प्रकार अपनी सेना का संहररर होता देख महिषासुर ने भैंसे का रूप् धारण करके देवी के गणों के त्रास देना आरम्भ किया।ं किन्हींको थूथूनसे मारकर, किन्हीं के ऊपर खुरों का प्रहार करके, किन्हीं-किन्हीं को पूँछ से चोट पहुँचा कर, कुछ को सींगों से विदीर्ण करके, कुछ गणों को वेग से, किन्हीं को सिंह नाद से, कुछ को चक्कर देकर और कितनों को निःश्वास-वायु के झोंके से धराशायी कर दिया। इस प्रकार गणों की सेना को गिराकर वह असुर महादेवी के सिंह को मारने के लिय झपटा। इससे जगदम्बा को बड़ा क्रोध हुआ। उधर महापराक्रमी महिषासुर भी क्रोध में भरकर धरती को खुरोसे खोदने लगा तथा अपने सींगों से ऊँचे-ऊँचे पर्वतों को उठाकर फेंकने और गर्जने लगा।। उसके वेग से चक्कर देने के कारण पृथ्वी क्षुब्ध होकर फटने लगीं उसकी पूँछसे टकराकर समुद्र सब ओर से धरती को डुबोने लगा।।
हिलते हुए सींगों के आघात से विदीर्ण बादलों के दुकड़े-टुकड़े हो गये। उसके श्वास की प्रचण्ड वायु के वेग से उड़े हुए सैकड़ों पर्वत आकाश से गिरने लगे। इस प्रकार क्रोध में भरे हुए उस महादैत्य को अपनी ओर आते देख चण्डिका ने उसका वध करने के लिए महान् क्रोध किया।। उन्होंने पाश फेंककर उस महान् असुर को बाँध लिया। उस महासंग्राम में बँध जाने पर उसने भैसे का रूप त्याग दिया। और तत्काल सिंह के रूप में वह प्रकट हो गया। उस अवस्था में जगदम्बा ज्यों ही उसका मस्तक काटने के लिये उद्यत हुई, त्यों ही वह खड्गधारी पुरूप के रूप में दिखायी देने लगा। तब देवी ने तुरंत ही बाणों की वर्षा करके ढाल और तलवार के साथ उस पुरूष को भी बींध डाला। इतने में ही वह महान् गजराज के रूप में परिणत हो गया। तथा अपनी सूँड़ से देवी के विशाल सिंह को खींचने और गर्जने लगा। खींचते समय देवी ने तलवार से उसकी सूँड़ काट डाली। तब उस महादैत्य ने पुनः भैंसे का शरीर धारण कर लिया और पहले की ही भाँति चराचर प्राणियों सहित तीनों लोकों को व्याकुल करने लगा।। तब क्रोध में भरी हुई जगन्माता चण्डिका बारंबार उतम मधुका पान करने और लाल आँखें करके हँसने लगीं। उधर वह बल और पराक्रम के कद से उन्मत हुआ राक्षस गर्जने लगा और अपने सींगों से चण्डी के ऊपर पर्वतों को फेंकने लगा।ं उस समय देवी आने बाणोंके समूहों से उसके फेंके हुए पर्वतों को चूण्र करती हुई बोलीं। बोलते समय उनका मुख मधुके मदसे लाल हो रहा था और वाणी लड़खड़ा रही थी।
देवी ने कहा- ओ मूढ़! मैं जबतक मधु पीती हूँ, तबतक तू क्षणभरके लिऐ खूब गर्ज ले। मेरे हाथसे यही ंतेरी मृत्यु हो जाने पर जब शीघ्र ही देवता भी गर्जना करेंगे।
ऋषि कहते हैं – यों कहकर देवी उछली और उस महादैत्य के ऊपर चढ़ गयी। फिर अपने पैर से उसे दबाकर उन्होंने शूल से उसके कण्ठ में आघात ंिकया। उनके पैर से दबा होने पर भी महिषासुर उपने मुख से {दूसरे रूपमें बाहर होने लगा} अभी आधे शरीर से ही वह बाहर हीवह बाहर निकलने पाया था कि देवी ने अपने प्रभाव से उसे रोक दिया। आधा निकला होने पर भी वह महादैत्य देवी से युद्व करने लगा। तब देवी ने बहुत बड़ी तलवार से उसका मस्तक काट गिराया।। फिर तो हाहाकार करती हुई दैत्यों की सारी सेना भाग गयी तथा सम्पूर्ण देवता अत्यन्त प्रसन्न हो गये।।
देवताओ ने दिव्य महार्षियों के साथ दुर्गा देवी का स्तवन किया। गन्धर्वराज गाने लगे तथा अप्सराएँ नृत्य करने लगी।।
इस प्रकार श्रीमार्कण्ेयपुराणमें सावर्णिक मन्वन्तरकी कथाके अन्तर्गत देवी माहात्म्य में ’महिषासुरवध’ नामक तीसरा अध्याय पूरा हुआ।।
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