दोस्तों, जिस पल का करोड़ों भारतीय पिछली कई सदियों से बेसब्री से इंतजार कर रहे थे। वो ऐतिहासिक पल अब निकट आ चुका है। जी हाँ, 22 जनवरी 2024 के दिन भगवान श्रीराम की नगरी अयोध्या में राम जन्मभूमि मंदिर का उद्घाटन होने वाला है। लेकिन क्या आप जानते हैं अयोध्या के इस पावन भूमि को लेकर संत 1528 में शुरू हुआ यह सांप्रदायिक विवाद 2020 तक चला था। अपने ही जन्मभूमि पर विराजमान होने के लिए प्रभु श्रीराम को 492 सालों तक इंतजार करना पड़ा था। इतना ही नहीं कोर्ट मे ये विवाद 134 सालों तक चला था। इसके लिए 10,00,000 से ज्यादा पन्ने स्कैन करने पड़े थे। जी हाँ, आप बिल्कुल सही सुन रहे है। 100, 200 नहीं बल्कि पूरे 10,00,000 स्कैन करने पड़े थे और भारत की सबसे बड़ी अदालत सुप्रीम कोर्ट के इतिहास का यह दूसरा सबसे लंबा चलने वाला केस था, जिसमें करीबन 40 दिन सुनवाई चली थी। तो आज हम राम मंदिर के चुनौती भरे इतिहास पर एक नजर डालेंगे और भगवान श्रीराम के जन्म उनके सुपुत्र कोष द्वारा बनाए गए पहले राम जन्म भूमि मंदिर सूर्य वंश की 44 पीढ़ियों तक चली। इस मंदिर की भव्यता और मुगलों द्वारा मंदिर को नष्ट करने की पहली कोशिश से लेकर बाबरी मस्जिद के विवाद की शुरुआत तक हर पहलू से जुड़े फैक्ट आपके सामने रखेंगे तो पूरी पोस्ट जरूर पढ़े।

अयोध्या का इतिहास – Ayodhya History In Hindi
काल | घटना |
प्राचीन काल | अयोध्या को सूर्यवंशी राजाओं की राजधानी माना जाता है। यहाँ भगवान राम का जन्म हुआ था। |
मध्यकाल | अयोध्या मुगल साम्राज्य के अधीन आ गई। |
आधुनिक काल | अयोध्या ब्रिटिश शासन के अधीन आ गई। |
स्वतंत्रता के बाद | अयोध्या भारत गणराज्य का हिस्सा बन गई। |
1980 के दशक | अयोध्या में राम मंदिर निर्माण का मुद्दा उठ खड़ा हुआ। |
1992 | 6 दिसंबर को अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के समर्थकों और विरोधियों के बीच हिंसा हुई। |
2019 | 9 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या में राम मंदिर निर्माण का फैसला सुनाया। |
- अयोध्या को भगवान श्रीराम के पूर्वज व्यवस्था ने बसाया था, तभी से शहर पर सूर्यवंशी राजाओं का राज़ था। यहीं पर राजा दशरथ के महल में प्रभु श्रीराम का जन्म हुआ था। उस वक्त अयोध्या नगरी इतनी सुन्दर हुआ करती थी कि इसकी तुलना स्वर्ग से की जाती थी। मगर प्रभु श्रीराम के जल समाधि के बाद अयोध्या में खर्च गई थी।
- लेकिन उनकी जन्मभूमि पर बना महल बिल्कुल वैसे का वैसा ही था जिसके बाद श्रीराम के बेटे कुश ने अयोध्या के राजभवन का फिर से निर्माण करवाया था और साथ ही कई मंदिर भी बनवाए थे, जिनमें से एक राम का जन्मभूमि मंदिर भी था। इसके बाद सूर्यवंशी की अगली चौवालिस ने अयोध्यानगरी पर राज़ किया। इस दौरान अयोध्या नगरी सुखी और संपन्न थी।
- महाभारत का दौर और विश्व के इस सबसे विशाल युद्ध में सूर्य वंश की आखिरी राजा महाराजा बल्कि मृत्यु जंग के दौरान अभिमन्यु के हाथ हुई थी। जिसके बाद अयोध्या का बुरा दौर शुरू हुआ और राजभवन के साथ प्रभु श्रीराम की जन्मभूमि मंदिर भी जर्जर होने लगी। मगर ईसा के करीब100 वर्ष पूर्व उज्जैन के चक्रवर्ती सम्राट विक्रमादित्य अयोध्या पहुंचते हैं और सरयू नदी के किनारे एक पेड़ के नीचे विश्राम करने बैठते हैं।
- उस वक्त अयोध्या में सिर्फ घना जंगल था मगर विक्रमादित्य को वहाँ दिव्य शक्ति महसूस होती है और वो आस पास के संतु से इस इलाके के बारे में पूछते हैं। तभी वो संत महात्मा सम्राट विक्रमादित्य को बताते हैं कि यह प्रभु श्रीराम की जन्मभूमि अयोध्या नगरी है जो कि महाराज बल्कि मृत्यु के बाद पूरी तरह से जर्जर हो चुकी है।
- तभी सम्राट विक्रमादित्य काले रंग के कसौटी पत्थर वाले 84 खंबों पर राम जन्मभूमि मंदिर का फिर से निर्माण करवातें हैं। साथ ही यहाँ राजमहल,कुएं और कई अन्य मंदिरों का निर्माण भी करवातें हैं, जिससे अयोध्या नगरी एक बार फिर चमक उठती थी।
- अब विक्रमादित्य के बाद कई राजाओं ने इस मंदिर की देखरेख की और समय समय पर सुधार कार्य करवाना जारी रखा। मगर 1100 बीसी में कन्नौज के राजा जयचंद ने मंदिर के स्तंभों पर सम्राट विक्रमादित्य के इंस्क्रिप्शंस को उखड़वाकर अपना नाम लिखवा दिया।
- हालांकि पानीपत युद्ध के बाद राजा जयचंद का आश्वासन भी समाप्त हुआ। इस दौरान भारत पर मुगलों के आक्रमण बढ़ गए थे, जो ना सिर्फ बड़े बड़े राज्यों को हथियाने की कोशिश में लगे हुए थे बल्कि काशी, मथुरा और अयोध्या जैसे समृद्ध राज्यों में भी लगातार लूटपाट कर रहे थे। मगर 14 वीं सदी तक वो अयोध्या के राम मंदिर को तोड़ने में सफल नहीं हो पाए थे।
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दुनिया के इतिहास का सबसे लंबा विवाद
बताया जाता है कि सिकंदर लोधी के शासन काल के दौरान ही यहाँ मंदिर मौजूद था। मगर 14 वी सदी में मुगलों ने हिंदुस्तान पर कब्जा कर लिया और लाखों हिंदुओं की भावनाओं से जुड़े राम जन्मभूमि मंदिर को नष्ट करने की काफी कोशिश की और आखिर में साल 1528 में वो इस 52 मंदिर को तोड़ने में सफल रहे जहाँ उन्होंने अपनी बाबरी मस्जिद के ढांचे को खड़ा किया था। दरअसल 1528 में मुगल साम्राज्य के संस्थापक बाबर नहीं इस मस्जिद के निर्माण का आदेश दिया था। तब से लेकर अयोध्या नगरी में इस जमीन को लेकर दो धर्मों के बीच के विवाद की शुरुआत हुई थी, जो 1528 से लेकर2020 तक करीबन 492 साल तक चला और इस विवाद को दुनिया के इतिहास का सबसे लंबा विवाद कहा जाता है।
खैर, कहानी पर वापस आए तो अकबर और जहाँगीर के शासन के दौरान हिन्दुओं को मंदिर के लिए पास की भूमि एक चबूतरे के रूप में सौंपी गई थी। मगर फिर मुगल शासक औरंगजेब ने अपने पूर्वज बाबर की याद में यहाँ भव्य मस्जिद बनवा कर उसे बाबरी मस्जिद ना दे दिया। लेकिन हिंदू धर्म के मुताबिक बाबरी मस्जिद के इन तीनों के नीचे भगवान श्रीराम की जन्मभूमि थी और मुगलों का यहाँ मस्जिद बनाना एक अपराध था। इसी वजह से साल 1853 में इस भूमि को लेकर पहला सांप्रदायिक दंगा शुरू हुआ, जिसे रोकने के लिए उस वक्त भारत को अपने कब्जे में करने की कोशिश में लगी।
इसी दौरान ब्रिटिश गवर्नमेंट बीच में आती है और ब्रिटिशर्स कहते हैं कि इस भूमि को दो हिस्सों में विभाजित करते हैं जिसमें मस्जिद के अंदर के हिस्से को मुसलमान और बाहर के चबूतरे का इस्तेमाल कर लेंगे। इस तरह 1859 में ये मामला बाहरी रूप से शांत हुआ, लेकिन अंदरूनी रूप से लोगों में अब भी गुस्सा था। जिसके बाद 1885 में पहली बार यह मामला अदालत पहुंचता है जब महंत रघुबीर दास जब उतरे में पूजा निर्माण के लिए मंदिर बनाने की मांग करते हैं। लेकिन उनकी मांग खारिज कर दी जाती है और अपनी ताकत के बल पर अंग्रेज इस मुददे को शांत करवा देते है।
1947 में भारत को अंग्रेजों की हुकूमत से आजादी मिलती है, जिसके 2 साल बाद 1949 में बाबरी मस्जिद और राम मंदिर को लेकर असली विवाद की शुरुआत होती है।

राम मंदिर के निर्माण का ऐतिहासिक फैसला
आखिरकार एक लंबे विवाद के बाद डॉक्टर बिहारी लाल की खनन रिपोर्ट को ध्यान में रखते हुए सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों की बेंच ने सर्वसम्मति से 9नवंबर 2019 को श्री राम मंदिर के निर्माण का ऐतिहासिक फैसला सुनाया। जिसके बाद श्रीराम जन्मभूमि न्यास नामक स्थान पर मंदिर निर्माण के लिए कार्यशाला बनाई गई। अयोध्या में आने वाले पर्यटक यहाँ आकर राम मंदिर निर्माण के कार्य के साक्षी बन सकते हैं।
अयोध्या मंदिर की पौराणिक कथा
मंदिर को लेकर पौराणिक कथा थी कि राम के पुत्र कुश की पत्नी नागवंश से होने के कारण भगवान शिव की उपासक थी। सरयू में स्नान करने के बाद वह रोज़ अपनी पत्नी के साथ अयोध्या की सुख समृद्धि के लिए इसी मंदिर में ध्यान किया करते थे। आज भी यह मंदिर सरयू नदी के किनारे राम की पैड़ी नमक घाट पर स्थित है। आजकेर था जीस रूप में दिखाई पड़ती है। उसकी रूपरेखा राजा विक्रमादित्य के नवरत्न द्वारा तैयार की गई थी। माना जाता है कि उन्होंने एक वर्ष के प्रत्येक दिन के लिए 365 मंदिरों का निर्माण करवाया था। इसमें दुबारा हमीर का ग्रह नक्षत्रों की स्थिति के आधार पर अयोध्या को वास्तुशास्त्र के सर्वथा अनुकूल बसाने में गहरा चिंतन था।
उन्होंने न सिर्फ इस नगर को बसाया बल्कि रामायण के सभी पात्रों के नाम पर कई भव्य मंदिरों और घाटों का निर्माण किया। जिसके बाद समय समय पर इस नगर की भव्यता ने लोगों को यहाँ पर आकर्षित किया। आगे चलकर कई राजा संत, अलग अलग धर्मों के लोगों ने यहाँ पर अपने अपने आस्था के केंद्रों को भी स्थापित किया, जिसमें बौद्ध, जैन, मुगल आदि विभिन्न धर्मों से लेकर गुप्त नन्द मौर्य एवं शुंग वंश के राजा भी शामिल थे।
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अयोध्या कितनी बार बसी?
पुराण के अनुसार अयोध्या को श्रीराम के पूर्वज मनुआ एक स्वांग उन्हें स्थापित किया था। इन्हीं के 64 वें वंशज श्रीराम के बाद उजली हुए अयोध्या को कुश ने फिर से बसाया। लेकिन अयोध्या कितनी बार बसी? इसका कोई भी उल्लेख ना तो पुराण में मिलता है ना ही इतिहास में। कुछ विशेषज्ञ ऐसा मानते हैं कि उज्जैन के राजा विक्रमादित्य ने लगभग 2000 वर्ष पहले अयोध्या के प्राचीन नगर की खोज करने के लिए सरयू नदी के किनारे कई प्राचीन शिव मंदिरों की प्रमाणिकता को लेकर गहन अध्ययन किया। विक्रमादित्य के नवरत्नों में कालिदास घटकों पर वेताल भट्ट, स्वप्ना वराहमिहिर, वररुचि शंकु, अमर सिंह एवं धनवंतरी शामिल थे। इन लोगों ने रामायण के आधार पर अयोध्या को खोजने एवं पुनर्निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। आखिरकार उनकी यात्रा 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक नागेश्वरनाथ मंदिर पर आकर समाप्त हुई। इस जगह पर सरयू नदी का बहाव पूर्व दिशा की तरफ हो जाता था।
अयोध्या श्रद्धा का केंद्र
श्रीराम जन्मभूमि के बाद अयोध्या में आने वाले पर्यटकों के लिए ये सबसे अधिक आकर्षण एवं श्रद्धा का केंद्र है। लक्ष्मण टीला तीसरा था लक्ष्मण टीलाविक्रमादित्य को यहाँ भी खंडहर हो चूके, महल के अवशेष प्राप्त हुए या ऐसा स्थान था जहाँ से अयोध्या के पश्चिमी छोर पर दूर तक नजर रखी जा सकती थी। मान्यता थी कि यहाँ श्रीराम ने लक्ष्मण जी के लिए किले का निर्माण करवाया था, जिसपर रहते हुए ऊँचाई से ही पश्चिम से आने वाले क्षेत्रों की जानकारी मिल सके।
आज एक ही लायक नए स्वरूप में सरयू नदी के किनारे मौजूद है। जहाँ से नदी के विस्तार को भली भांति देखा जा सकता है। विक्रमादित्य से लेकर आज तक ये टीला लगभग 2000 साल का परिवर्तन अपने भीतर समेटे अडिग खड़ा है धर्मशास्त्री। ऐसा मानते हैं कि लक्ष्मण ने गोमती नदी के किनारे एक नया नगर बसाया था, जो लक्ष्मणपुरा के नाम से प्राणों में मिलता है।

FAQS: अयोध्या का इतिहास – Ayodhya History In Hindi
अयोध्या की उत्पत्ति कैसे हुई?
अयोध्या की उत्पत्ति मनु के पुत्र इक्ष्वाकु ने की थी। इक्ष्वाकु ने सरयू नदी के किनारे एक नगर बसाया और उसे अयोध्या नाम दिया। अयोध्या जल्द ही एक शक्तिशाली नगर बन गया और सूर्यवंशी राजाओं की राजधानी बन गई।
अयोध्या शहर का पुराना नाम क्या है?
अयोध्या शहर का पुराना नाम साकेत था। अयोध्या को साकेत के नाम से भी जाना जाता है। साकेत का अर्थ है “आनंद का स्थान”। यह नाम अयोध्या के सुंदर और शांतिपूर्ण वातावरण को दर्शाता है।
अयोध्या में राम मंदिर से पहले क्या था?
अयोध्या में राम मंदिर से पहले एक बाबरी मस्जिद थी। बाबर के सेनापति मीर बाकी ने 1528 में इस मस्जिद का निर्माण कराया था।
वर्तमान में अयोध्या कहां है?
वर्तमान में अयोध्या भारत के उत्तर प्रदेश राज्य में स्थित है। यह सरयू नदी के किनारे स्थित है। अयोध्या उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ से लगभग 130 किलोमीटर पूर्व में स्थित है।
भारत का सबसे पुराना राम मंदिर कौन सा है?
भारत का सबसे पुराना राम मंदिर मुंडेश्वरी देवी मंदिर है, जो बिहार के कैमूर जिले में स्थित है। इस मंदिर का निर्माण 108 ईस्वी में हुआ था। यह मंदिर भगवान राम और देवी सीता को समर्पित है।
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